Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२७१ को एक हाथ में घुमाने लगे। तीव्र वेग से घूमता हुप्रा वह दण्ड राधावेध में घूमते हुए चक्र की शोभा को धारण करने लगा। प्रलय कालीन समुद्र के प्रावर्त में घरिणत मत्स्यावतारी विष्णु की तरह घमते उस दण्ड को देखकर लोगों की आँखें भी भ्रम में पड़ गयीं। उस सेना के सभी लोगों एवं देवताओं को भी यही शंका होने लगी कि यदि बाहुबली के हाथ से छूट कर दण्ड उड़ जाए तो वह सूर्य को कांसे के पात्र की तरह तोड़ देगा । चन्द्रमण्डल को भारण्ड पक्षी के अण्डे को तरह चूर्ण कर देगा, नक्षत्रों को माँवले के फल की तरह झाड़ देगा, वैमानिक देवों के विमान को पक्षियों के नीड़ की तरह छिन्न कर देगा, पर्वत शिखर को वल्मीक की तरह फोड़ देगा, बड़ेबड़े वृक्षों को कुज के तृणों की तरह कुचल देगा और पृथ्वी को कच्ची मिट्टी के गोलक की तरह चूर देगा। इस प्रकार शशंक दृष्टि से परिदष्ट उस दण्ड से बाहुबली ने चक्री के मस्तक पर प्रहार किया। उस दण्ड के प्राघात से वज्रघात से विध्वंस दुर्ग की तरह चक्रो गले तक धरती में धंस गए। उनके सैनिक भी दुःखित होकर धरती पर गिर पड़े मानो वे याचना कर रहे हों कि हमारे प्रभु को जिस प्रकार धरती में प्रविष्ट करा दिया उसी प्रकार हमको भी करा दीजिए। राहू के द्वारा ग्रसित सूर्य की तरह जब चक्री धरती में प्रविष्ट हुए उस समय आकाश में देवों का और धरती पर मनुष्यों का कोलाहल सुनायी पड़ा। जिनकी आँखें बन्द हो गई हैं, मुंह कृष्णवर्ण हो गया है ऐसे भरतपति मानो लज्जित हुए हों इस प्रकार कुछ क्षरण भूमि में स्थिर रहे। फिर उसी समय इस भाँति पृथ्वी से निकले जिस प्रकार रात्रि समाप्त होने पर सूर्य देदीप्यमान और अधिक तेज होकर बाहर निकलता है। (श्लोक ६६४-७०१)
__ उस समय चक्री सोचने लगे-जिस प्रकार अन्ध जारी प्रत्येक प्रकार से जुए में हार जाता है उसी प्रकार बाहुबली के साथ हर प्रकार के युद्ध में मैं हार गया हूँ। तो क्या गाय जैसे घास बिचाली खाती है; किन्तु उससे उत्पन्न दुग्ध दोहन करने वाला उपभोग करता है उसी प्रकार मेरे द्वारा विजित भरत क्षेत्र का उपभोग बाहुबली करेगा? एक म्यान में दो तलवार की तरह भरत क्षेत्र में एक ही समय में दो चक्रवर्ती तो न कभी देखे गए न सुने गए । गधे के सींगों की तरह देवताओं द्वारा इन्द्र एवं राजानों द्वारा चक्रवर्ती पर जय लाभ इसके पूर्व कभी सुना नहीं गया। तो क्या