Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२६३ उत्पन्न हो रही हैं। कहा भी गया है-भक्ति वहां भी शंका उत्पन्न कर देती है जहाँ शंका का कोई कारण ही नहीं होता। इसलिए हे वीर सैनिकगण, तुम सब एकत्र होकर मेरे बाहुबल को देखो। रोग नष्ट हो जाने पर औषधि के लिए उत्पन्न शंका जिस प्रकार नष्ट हो जाती है उसी प्रकार तुम्हारी शंका भी दूर हो जाएगी।'
(श्लोक ५४१-५५६) तत्पश्चात् चक्रवर्ती ने सेवकों द्वारा एक खूब लम्बा चौड़ा और गहरा गर्त खुदवाया-दक्षिण समुद्र के तट पर जिस प्रकार सह्याद्रि पर्वत रहता है उसी प्रकार उस गर्त के समीप वे बैठ गए। वट-वृक्षों को लम्बी-लम्बी जटाओं की तरह भरतेश्वर ने अपने बाएं हाथ में एक पर एक मजबूत शृखला बँधवायी। किरणों से जिस प्रकार सूर्य शोभित होता है, लता से वृक्ष शोभित होता है उसी प्रकार एक हजार शृखलाओं से महाराज सुशोभित होने लगे। फिर उन्होंने सैनिकों को कहा-'हे वीरो, जिस प्रकार गाय शकट को खींचती है उसी प्रकार तुम लोग तुम्हारे समस्त बल और वाहन द्वारा मुझे निर्भयतापूर्वक खींचो। और तुम सबके एकत्र बल द्वारा मुझे इस गर्त में गिरा दो। प्रभु के बल की परीक्षा से प्रभु का अपमान होगा ऐसा सोचकर छल मत करो । मैंने एक दुःस्वप्न देखा है । इस प्रकार तुम लोग उसे विनष्ट करो । कारण, जो स्वप्न देखता है वह यदि स्वयं ही स्वप्न को सार्थक कर देता है तो स्वप्न निष्फल हो जाता है।' जब चक्री बार-बार यही बात कहने लगे तब सैनिकों को बाध्य होकर मानना पड़ा। कारण स्वामी की आज्ञा बलवान होती है फिर देव और असुरों ने मन्दराचल रूपी मन्थनदण्ड से वेष्टित सो को जिस प्रकार खींचा था उसी प्रकार सैनिकगण चक्री के हाथों में बँधी शृखला को खींचने लगे। उनके हाथों में बँधी इस शृखला को पकड़े हुए सैनिक ऐसे लगने लगे मानो एक ऊँचे वृक्ष की शाखा पर एक दल बन्दर बैठे हों। पर्वत को बिद्ध करने का प्रयास करने वाले हस्तियों की (जैसे पर्वत उपेक्षा करता है) उसी प्रकार उन सब सैनिकों की, जो उन्हें खींच रहे थे, चक्री ने उपेक्षा की । तदुपरान्त उन्होंने अपना फैलाया हुअा हाथ छाती से लगाया। उससे सब सैनिक इस प्रकार गिर गए जैसे पंक्ति में बँधे हुए घड़े खींचने पर गिर जाते हैं। उस समय चक्री के हाथों में झूलते हुए सैनिक इस प्रकार शोभित होने लगे जैसे खजूर से वृक्ष शोभित