Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अश्वों के तीक्ष्ण क्षुर से खनन कर रहे थे, लोहे के अर्द्धचन्द्र से ऊँटों के क्षरों से बिद्ध कर रहे थे, पदातिकों के जूतों की नालों से विदीर्ण कर रहे थे, क्षरप्र वारण की तरह महिष और बलीवर्द के क्षुर खोद रहे थे और मुद्गर के समान हाथियों के पांवों से चूर्ण कर रहे थे। अन्धकार की तरह रजसमूह से वे आकाश को आच्छादित कर रहे थे और सूर्य-किरण के समान झिलमिलाते अस्त्र-शस्त्रों से चारों ओर पालोक विकीर्ण कर रहे थे। वे अतिभार में कर्म पृष्ठ को कष्ट दे रहे थे। महावाराह के ऊँचे नासाग्र को प्रानमित और अनन्त नाग के फरणों के गर्व को खर्व कर रहे थे। वे ऐसे लग रहे थे मानो समस्त दिग्गज को कुब्ज कर रहे हों। अपने सिंहनाद से ब्रह्माण्ड रूपी पात्र को उच्च ध्वनिकारी बना रहे थे। उनके ताल ठोकने की उच्च ध्वनि ब्रह्माण्ड को विदीर्ण करती-सी लग रही थी। परिचित ध्वज-चिह्न से पराक्रमी स्व प्रतिस्पर्धी वीरों को पहचान कर नाम ले-लेकर उनका वर्णन कर रहे थे एवं अभिमानी और शौर्यवान वीर एक-दूसरे को ललकार रहे थे। मकर जिस प्रकार मकर के सामने आता है उसी प्रकार हस्तीपृष्ठ आरूढ़, हस्तीपृष्ठ पर चढ़े हुओं के सम्मुख आ गए। तरंग जैसे तरंग से पाहत होती है उसी प्रकार अश्वारोही अश्वारोही के सामने आए। जिस प्रकार वायु वायु से प्रतिहत होती है उसी भाँति रथी रथी के सम्मुख
आए और शृङ्गी जैसे शृङ्गी पर आक्रमण करता है उसी प्रकार पैदल सेना पैदल सेना के सम्मुख पायी। इस भांति समस्त वीर बर्खा, तलवार, मुद्गर और दण्ड आदि आयुधों को लेकर क्रोधपूर्वक एक-दूसरे के सामने आए।
(श्लोक ४१४-४३४) उसी समय त्रिलोक विनाश के भय से देवतागण आकाश में एकत्र हुए और सोचने लगे दो हाथों-से इन दोनों ऋषभ-पुत्रों में परस्पर युद्ध क्यों हो रहा है ? फिर उन्होंने दोनों पक्ष के सैनिकों से कहा-हम जब तक तुम्हारे मनस्वी प्रभुत्रों को उपदेश दें तब तक युद्ध मत करो। यदि किसी ने किया तो उसे ऋषभदेव की शपथ है। देवताओं के ऋषभदेव की शपथ देने के कारण दोनों पक्षों के उत्साही सैनिक चित्र-लिखित से हो गए। वे सोचने लगे-ये देवगण भरत के पक्ष के हैं या बाहुबली के पक्ष के। (श्लोक ४३५-४३९)
कोई ऐसा कार्य करना होगा जिससे हानि न होकर लोककल्याण हो ऐसा सोचकर देवगण पहले चक्रवर्ती के समीप गए।