Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२४३ के लिए प्राण तक देने को प्रस्तुत हैं। सिंह की तरह वन मौर पर्वतों पर रहने वाले वीर भी उनके वश में हैं । वे चाहते हैं कि उनके राजा का सम्मान किसी भी प्रकार नष्ट न हो। हे स्वामिन्, और अधिक क्या कहूं, महावीर को देखने की इच्छा से नहीं, युद्ध की इच्छा से वे आपको देखना चाहते है। अब आप जैसा उचित समझें करें। कारण, दूत मन्त्री नहीं होता वह तो केवल सन्देश मात्र पहुंचाता है।'
(श्लोक २१३-२३०) यह सुनकर राजा नट की तरह एक ही साथ पाश्चर्य, कोप और हर्ष का अभिनय करते हुए बोले-'बचपन में खेलते समय मैंने अनुभव किया है कि बाहुबली के समान संसार में सुर-असुर और मानव कोई नहीं है। त्रिलोक के स्वामी का पुत्र और मेरा अनुज त्रिलोक को तृणवत् समझता है यह उसके लिए अतिशयोक्ति नहीं, सत्य है। ऐसे अनुज के लिए मैं भी प्रशंसा का अधिकारी हूँ। कारण, एक हाथ छोटा हो और दूसरा बड़ा तो वह शोभा नहीं देता । यदि सिंह बन्धन स्वीकार करे और अष्टापद वशीभूत हो जाए तो बाहुबली को भी वश में किया जा सकता है। यदि इसे वश में कर लिया जाए तो शेष हो क्या रह जाएगा? उसका अविनय मैं सहन करूंगा। इसके लिए लोग मुझे दुर्बल कहें तो कहें। समस्त वस्तुएं पुरुषार्थ व धन से प्राप्त की जा सकती हैं; परन्तु भाई, विशेषकर ऐसा भाई किसी प्रकार भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। हे मन्त्रीगण, मैंने जो कुछ कहा वह मेरे योग्य है या नहीं कहो ? तुम लोगों ने वैरागियों की तरह क्यों मौन धारण कर रखा है ? जो यथार्थ है प्रकट करो।' (श्लोक २३१-२३८)
बाहबली का ऐसा अविनय और स्व-स्वामी का ऐसा क्षमायुक्त कथन सुनकर मानो आघात से दु:खित हों इस प्रकार सेनापति सुषेण बोले-'ऋषभनाथ स्वामी के पुत्र भरत के लिए क्षमा सर्वथा योग्य है; किन्तु क्षमा करुणा के पात्र के लिए ही होना उचित है। जो जिसके ग्राम में रहता है वह उसके वश में रहता है; किन्तु बाहुबली आपके राज्य में रहते हुए वचन से भी आपके वश में नहीं है। प्राण नाशकारी होने पर भी प्रतापी शत्रु अच्छा है; किन्तु प्रताप-नाशकारी भाई अच्छा नहीं है। राजा अर्थ, सैन्य, मित्र, पुत्र यहां तक कि अपना शरीर देकर भी स्व-प्रताप की रक्षा करते हैं।