Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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भरी बातें सुनकर वे ये सब बातें भूल गए हैं; किन्तु वे सभी चाटुकार भाग जाएँगे और भरत को अकेले ही बाहुबली के हस्त द्वारा उत्पन्न वेदना सहन करनी होगी । हे दूत, तुम यहां से प्रस्थान करो। मेरे राज्य और जीवन की इच्छा से उन्हें यदि यहां आना पड़े तो आएँ । मैं तो पिता द्वारा दिए गए राज्य से सन्तुष्ट हूँ । उनका राज्य लेने की मेरी इच्छा नहीं है । अतः वहां जाने का मेरा कोई प्रयोजन ही दृष्टिगत नहीं होता ।'
बाहुबली के इस प्रकार बोलने पर स्वामी के दृढ़ प्रज्ञारूपी बन्धन में आबद्ध चित्र-विचित्र शरीरी अन्य राजागरण क्रोध से रक्तवर्ण बने नेत्रों से सुवेग का अवलोकन करने लगे । राजकुमारगरण 'मारो-मारो' कहते हुए श्रोष्ठ स्फुरित कर विचित्र भाव से उसे देखने लगे । अच्छी तरह से कमरबन्द कसे अंगरक्षक तलवार हिलाते हुए ऐसे देखने लगे मानो वे उसे मार डालेंगे । मन्त्री को भय लगने लगा कि महाराज का कोई साहसिक सैनिक उसकी हत्या न कर बैठे । उसी समय छड़ीदार का पांव उठा और एक हाथ इस प्रकार ऊँचा हुआ मानो वह दूत की गर्दन पकड़ने को उत्सुक है; किन्तु ऐसा नहीं हुआ । उसने हाथ पकड़कर दूत को प्रासन से उठा दिया । इस व्यवहार से सुवेग का मन क्षोभ से भर उठा । जो कुछ भी हुम्रा; किन्तु वह धैर्य धारण कर सभा से बाहर निकल गया । कुपित बाहुबली के कठोर शब्दों को स्मरण कर राजद्वार के प्रहरी भी क्षुब्ध हो गए । उनमें कोई ढाल ऊँची-नीची करने लगा, कोई तलवार घुमाने लगा, किसी ने मारने के लिए चक्र हाथ में उठाया, किसी ने मुद्गर उठाया, कोई त्रिशूल झनझनाने लगा, किसी ने तूणीर बांधा तो किसी ने दण्ड ग्रहण कर लिया, तो कोई परशु उत्तोलित करने लगा । समस्त पदातिकों को इस प्रकार करते देख वह दूत पद-पद पर मृत्यु भय से भयभीत हो गया । मारे भय के उसके पैर सीधे नहीं पड़ रहे थे । इस प्रकार सुवेग नरसिंह के सिंहद्वार से बाहर निकला । उसने रथ पर चढ़कर लौटते हुए इस प्रकार वार्ता ( श्लोक १२१-१६४)
सुनी :
- 'राजद्वार से यह नया आदमी कौन निकला ?'
- 'यह राजा भरत का दूत लगता है ।'
- ' पृथ्वी पर क्या बाहुबली के अतिरिक्त और भी राजा है ?