Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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एक सुन्दरी चमेली फूल तोड़ना चाह रही थी; किन्तु वहां बैठे एक भ्रमर ने उसके प्रष्ठों का दर्शन कर लिया मानो उसके प्राश्रयभङ्गकारी पर रुष्ट हो गया था । कोई सुन्दरी बाहुलता ऊँची कर पुष्प चयन करने के साथ-साथ उसके बाहूमूलों पर बद्ध दृष्टि पुरुष का हृदय भी चयन कर रही थी । नवीन पुष्पों के गुच्छों को हाथ में रखकर पुष्प चयनकारिणियां संचरमान लता - सी लग रही थीं । वृक्ष शाखाओं पर कौतुकवश पुष्प चयनकारिणियों ने भूलना प्रारम्भ कर दिया था । उन्हें देखकर लगता है मानो उस वृक्ष में स्त्रीरूप फल झूल रहा है । कोई युवक स्वयं ही मल्लिका कलियां चयन कर अपनी प्रिया के लिए मुक्ता - माला-सी माला एवं अन्य अलंकार प्रस्तुत कर रहा था। किसी ने अपनी प्रिया की कवरी को विकसित फूलों से इस प्रकार भर दिया मानो कामदेव के तूणीर को उसने सजा दिया है । कोई पांच रंग के फूलों से इन्द्रधनुषी माला अपने हाथों से गूँथ कर अपनी प्रिया को पहनाकर प्रसन्न कर रहा था । कोई युवक कोड़ाछल से निक्षिप्त पुष्पकन्दुक भृत्य की भांति प्रहरण कर ला लाकर अपनी प्रिया को दे रहा था । कुछ मृगाक्षियां झूले में झूलती हुई सामने के वृक्ष पर इस प्रकार पदाघात कर रही थीं मानो अपराधी पति पर पैर से प्रहार कर रही हों । कोई नवोढ़ा सखियों द्वारा पति का नाम पूछने पर लज्जा से प्रानमित होकर उनके पदप्रहार को सहन कर रही थीं । कोई युवक अपने सामने बैठी भयभीत प्रिया को गाढ़ आलिंगन देने की इच्छा से खूब जोर से झूला ले रहा था । वृक्षों की शाखाओं पर बँधे झूले रसिकजनों के अधिक वेग से धावित करने के कारण वृक्षों के पत्रों के मध्य वार-बार आने-जाने से वे मर्कट से लगते थे । ( श्लोक ९८५ - २०१६)
इस प्रकार नगरनिवासियों को लीला - विलास में मग्न देख कर प्रभु के मन में विचार उत्पन्न हुआ कि क्या अन्यत्र भी इसी प्रकार लीला - विलास होता है ? विचार करते-करते अवधिज्ञान से पूर्व जन्मों से लेकर अनुत्तर विमान पर्यन्त समस्त स्वर्ग उन्हें स्मरण हो ग्राए । चिन्तन करते हुए उनका मोह भंग हुग्रा । वे सोचने लगेइन विषयाक्रान्त मनुष्यों को धिक्कार है ! ये श्रात्मसुख के विषय में कुछ नहीं जानते | हाय ! ये संसार रूपी कूप में यन्त्रारूढ़ कलश की भांति बार-बार यातायात करते हैं । मोहान्ध मनुष्यों के जन्म को