Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१३५ जाएगी। अतः तात, भली-भांति इस पृथ्वी का पालन करो । तुम प्राज्ञा पालक हो, तुम्हें मेरा यही आदेश है।' (श्लोक ८.९)
प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन करने में असमर्थ भरत ने राज्य ग्रहण किया। कहा भी गया है-गुरुजनों के प्रति विनय व्यवहार अर्थात् गुरुजनों की आज्ञा का पालन करना ही छोटों का कर्तव्य है ।
(श्लोक १०) तब नम्र भरत ने उन्नत वंश की भांति पिता के सिंहासन को अलंकृत किया । प्रभु के आदेश से सामन्त सेनापति ग्रादि ने भरत के राज्यारोहण उत्सव को उसी प्रकार प्रतिपालित किया जिस प्रकार इन्द्रादि देवताओं ने भगवान् के राज्यारोहण के समय किया था। उसी समय प्रभु के शासन की तरह भरत के मस्तक पर पूर्णिमा के चन्द्रतुल्य अखण्ड छत्र सुशोभित हुया । उसके दोनों ओर चँवर डुलने लगे। वे भरत-क्षेत्र के उत्तर-दक्षिण दोनों ओर से आए लक्ष्मी के दूत से लगे । वे वस्त्र और अलङ्कारों से इस प्रकार शोभित होने लगे मानो वे उनके उज्ज्वल गुण हैं। महामहिम उन नवीन राजा को नवीन चन्द्रमा की भांति समस्त राजमण्डल ने अपनी कल्याण कामना से प्रणाम किया।
(श्लोक १०-१६) प्रभु ने बाहुबली ग्रादि पुत्रों से भी उनकी योग्यतानुसार राज्य बांट दिया। फिर उन्होंने कल्पवृक्ष की भांति लोक की इच्छानुरूप वार्षिक दान देता प्रारम्भ किया। नगर के चौराहों एवं द्वारों के निकट ढोल बजाकर यह घोषित कर दिया गया जिसको जिस चीज की अावश्यकता है वह प्रभु से पाकर ले जाए। जब प्रभु ने दान देना प्रारम्भ किया तब कुबेर ने ज़म्भक आदि देवताओं को आदेश दिया कि वे प्रभु के निकट धन उपस्थित करें। वे लोग उस धन रत्न स्वर्ण रौप्य आदि को लाकर प्रभु के कोष में जमा करने लगे जो चिरकाल से नष्ट हो गया था, खो गया था, मर्यादालंघनकारी था या अन्याय द्वारा प्राप्त किया गया था या श्मशान में, पहाड़ों, में उद्यानों एवं घर की जमीनों में गाड़ कर छिपाया हुआ था या जिसका कोई अधिकारी नहीं था। देवताओं ने उसी प्रकार प्रभु का कोष पूर्ण किया जैसे वर्षा का जल कुए ग्रादि जलाशयों को पूर्ण करता है। भगवान् सूर्योदय से दान देना प्रारम्भ करते वह मध्याह्न के भोजन के पूर्व तक चलता। वे प्रतिदिन एक करोड़ आठ लाख सुवर्ण मुद्रा की