Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
[२२९
पुरुषों के बल नाशकारी हैं। जिस प्रकार समस्त शस्त्र एक अोर एवं चक्र एक ओर है उसी प्रकार समस्त राजागण एक अोर एवं बाहु. बली एक अोर हैं। जिस प्रकार आप भगवान ऋषभ के लोकोत्तर पुत्र हैं उसी प्रकार वे भी हैं। जब तक आपने उन पर विजय प्राप्त नहीं की तब तक किसी पर विजय प्राप्त नहीं की है ऐसा माना जाएगा। यद्यपि भरत क्षेत्र के छह खण्डों में प्राप जैसा किसी को नहीं देखा फिर भी आपका गौरव तो तभी बढ़ेगा जब आप बाहुबली को जीत लेंगे। बाहुबली जगतमान्य आपकी आज्ञा नहीं मानते है इसीलिए उन्हें जीते बिना चक्र मानो लज्जित हो रहा है अतः नगर में प्रवेश नहीं कर रहा है। अल्प व्याधि की तरह क्षुद्र दुश्मन की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। एतदर्थ अब और विलम्ब न कर उन्हें जय करने का प्रयास शीघ्र ही करना उचित है।'
(श्लोक १-१३) मन्त्री के ऐसे वचनों को सुनकर दावानल-दग्ध और मेघवारि से सिक्त पर्वत की तरह युगपत् कोप और शान्ति से आश्लिष्ट (अर्थात् पहले कुपित और बाद में शान्त) होकर भरतेश्वर बोले'एक ओर छोटा भाई आज्ञा पालन नहीं करता यह लज्जास्पद है, दूसरी ओर छोटे भाई के साथ युद्ध करना भी दु:खदायी है । जिसकी आज्ञा घर के लोग ही स्वीकार नहीं करते उसकी आज्ञा बाहर भी उपहासास्पद होती है। इस प्रकार छोटे भाई के अविनय को सहना भी अपवाद रूप है। अहंकारी को सजा देना राजधर्म और भाइयों से मिलजुल कर रहना व्यवहार धर्म भी है । दुःख का विषय है कि मैं उभय संकट में पड़ गया हूं।'
(श्लोक १४-१७) अमात्य बोले-'महाराज, आपका यह संकट अपनी महत्ता से आपका छोटा भाई ही दूर करेगा। सामान्य गृहस्थों में भी यही नियम है कि बड़ा भाई जो आज्ञा देता है उसे छोटा भाई मानता है। इसीलिए सामान्य रीति का अनुसरण कर संवादवाहक दूत भेज कर छोटे भाई को आज्ञा दीजिए। हे देव, केशरी सिंह जिस प्रकार जीन सहन नहीं करता उसी प्रकार वीर अभिमानी आपका छोटा भाई यदि जगत् पक्ष में मान्य आपकी आज्ञा नहीं मानता है तब इन्द्र तुल्य पराक्रमी आप उसे दण्ड दें। इस प्रकार करने से लोकाचार का भी पालन होगा और आपको भी कोई दोष नहीं देगा।
(श्लोक १८-२२)