Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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महाराज ने मन्त्री की बात स्वीकार कर ली । कारण, शास्त्र और लोक-व्यवहार दोनों के ही अनुरूप जो वाक्य होते हैं उनको स्वीकार करना उचित है। तब उन्होंने नीतिज्ञ और वाक-पटु सुवेग नामक दूत को शिक्षण देकर बाहुबली के पास भेजा । अपने स्वामी की शिक्षा को दौत्य कार्य की दीक्षा की भांति स्वीकार कर सुवेग रथ पर चढ़कर तक्षशिला नगरी की ओर रवाना हुा । (श्लोक २३-२५)
सुवेग जब सैन्य सहित वेगवान् रथ पर बैठकर विनीता नगरी से बाहर निकला तो ऐसा लगा मानो वह भरतपति की शिरोधार्य प्राज्ञा ही हो। जैसे ही उसने यात्रा प्रारम्भ की दैव, विरुद्ध है ऐसी सूचना स्वरूप उसकी बायीं अांख बार-बार फड़कने लगी। अग्निमण्डल में धौंकनी से हवा देने पर जैसे अग्नि तेज हो जाती है उसी प्रकार उसकी दाहिनी नाड़ी बिना व्याधि के ही तेज चलने लगी। तोतला जिस प्रकार असंयुक्त अक्षर बोलने में भी अटकता है उसी तरह उसका रथ सरल पथ पर भी बार-बार अटकने लगा। कृष्ण मृग जिसे उसके अश्वारोहियों ने आगे जाकर भगा दिया था न जाने किसकी प्रेरणा से उसके दाहिनी ओर से बायीं ओर चला गया। काक सूखे कण्टक वृक्ष पर बैठकर अपने चप्पू रूप अस्त्र को मानो पत्थर पर घिस रहा हो इस भांति घिसते-घिसते उसके सम्मुख कटु शब्द बोलने लगा। उसकी यात्रा को रोकने के लिए मानो भाग्य ने अर्गला लगा दी हो इस प्रकार एक लम्बा सर्प उसके सामने से निकल गया। जैसे पुनः विचार के लिए सुपण्डित सुवेग दूत को लौटने के लिए विवश कर रही हो ऐसी प्रतिकुल वायु धल उडाकर उसकी आंखों को भरती हुई प्रवाहित होने लगी। मैदा न लगाया हुया या टूटा हुया मृदङ्ग सा विरस शब्द करता हा गधा उसके दाहिनी ओर खड़ा होकर रेंकने लगा। इन सभी अपशकुनों को पूर्णतया जानता हुअा भी सुवेग दूत अग्रसर होता रहा। कारण, सद् दूत स्वामी के काम पर तीर की तरह सीधे जाते हैं, राह में कहीं अटकते नहीं। अनेक ग्राम, नगर, बाजार और गलियों से द्रुतवेग से गुजरते उस दूत को लोगों ने क्षणमात्र के लिए झंझा की तरह देखा। स्वामी के कार्य में नियुक्त क्रीतदास जिस प्रकार कशाघात के भय से निरन्तर कार्य करते रहते हैं उसी तरह सुवेग ने वृक्षवाटिकाओं,सरोवरों एवं सिन्धुतटों पर जरा भी विश्राम नहीं किया। इसी भांति चलते-चलते मृत्यु के एकान्त रतिक्षेत्र से भयंकर अरण्य