Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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जैसा ही बन गया। सैन्य द्वारा वह गुफा लोक नालिका की भांति टेढ़ी-मेढ़ी हो गई। क्रमश: चक्रवर्ती उस गुफा के मध्य भाग में निम्नांग के वस्त्र पर पहनी हुई कटि मेखला-सी उन्मग्ना और निमग्ना नामक दो नदियों के निकट पहुँचे। उन दोनों नदियों को देखकर लगता मानो दक्षिण और उत्तर भरतार्द्ध से पाए लोगों के लिए वैताढय पर्वत ने नदी रूप दो आज्ञा रेखा खींच दी है। उन दोनों नदियों के मध्य उन्मग्ना में पाषाण शिलाएँ तुम्बे के खोल की तरह प्रवाहित होती और निमग्ना में तूम्बे के खोल भी पाषाण शिलाओं की भांति डूब जाते। वे दोनों नदियां तमिस्रा गुफा की पूर्व प्राचीर से निर्गत होकर पश्चिम प्राचीर से होती हुई सिन्धु नदी में मिल जाती है । उस नदी पर वर्द्धकिरत्न ने एक अच्छा पुल तैयार किया। वह पुल वैताढय कुमार देवों की एकान्त स्थित विशाल शय्या-सा लगता था। वर्द्धकिरत्न ने क्षण भर में वह पुल तैयार कर दिया। कारण, गेहाकार कल्पवृक्ष को गृह निर्माण में जितना समय लगता है वर्द्धकिरत्न को उतना भी नहीं लगता । उस पुल पर पत्थर इस प्रकार जड़ित किए गए थे लगता जैसे पूरा पुल एक ही पत्थर से बना हो। उसकी भूमि हाथ-सी समतल और वज्र-सी कठोर होने के कारण वह गुफा के द्वार के दरवाजों द्वारा निर्मित लगती थी। उस दुस्तर नदी को चक्रवर्ती ने सैन्य सहित इस प्रकार स्वच्छन्द रूप से पार किया जैसे पथचारी सामान्य पथ का अतिक्रम करते हैं । महाराज सैन्य सहित अनुक्रम से उत्तर दिशा के मुख को भाँति गुफा के उत्तर द्वार के निकट उपस्थित हुए। उत्तर द्वार के दरवाजे के दोनों किंवाड़ दक्षिण द्वार की आवाज सुनकर भयभीत हो गए हों इस प्रकार तत्काल खुल गए। दरवाजा खुलने के समय जो सर-सर शब्द हुआ वह जैसे सेना को अग्रसर होने के लिए कह रहा था। दोनों किंवाड़ दीवारों से टकराकर इस प्रकार खड़े हो गए मानो पहले वे कभी यहां थे ही नहीं । अचानक पा गए हैं । फिर सूर्य जिस प्रकार मेघ से बाहर निकलता है उसी प्रकार चक्रवर्ती के आगे चलता हुआ चक्र गुफा के बाहर निकला। उसके पीछे पृथ्वीपति भरत इस भांति निकले जिस प्रकार पाताल के विवर से वलीन्द्र निकलता है। तदुपरान्त विन्ध्याचल की गुफा से निःशंक लीलायुक्त हस्ती जैसे बाहर निकलता है वैसे ही हस्तीयूथ निकला। समुद्र से निकलते हुए सूर्याश्वों का अनुसरण करते हुए सुन्दर घोड़े