Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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चक्री के चक्र भय से नागकुमार देवताओं का आसन कम्पित हुया । अवधि-ज्ञान से म्लेच्छों को दुःखी देख पिता जैसे सन्तान के दु:ख से दुःखी होते हैं उसी प्रकार दु:खी हो वे उनके सम्मुख जाकर प्रकट हुए और आकाश में स्थित होकर बोले-'तुम लोग मन में उत्पन्न किस इच्छा को सफलता चाहते हो ?' (श्लोक ४०२.४१३)
___ आकाश स्थित मेघमुख नागकुमारों को देखकर मानो वे अत्यन्त पिपासित हों इस प्रकार करबद्ध होकर मस्तक टेकते हुए बोले-'हमारे देश में आज तक किसी ने भी कभी आक्रमण नहीं किया; किन्तु इस समय कोई आ पहुँचा है। आप कुछ ऐसा करिए जिससे वे यहां से चले जाएँ।' देवगण बोले-'हे किरातगण, ये भरत चक्रवर्ती राजा हैं। ये इन्द्र की भांति अजेय हैं । देव, असुर या मनुष्य कोई इन को पराजित नहीं कर सकता। छेनी द्वारा जिस प्रकार पर्वत के पाषाण को विद्ध नहीं किया जा सकता उसी प्रकार पृथ्वी पर चक्रवर्ती राजा मन्त्र, तन्त्र, विष, शस्त्र एवं विद्याओं के लिए अभेद्य हैं। उनके पास कोई नहीं पहुंच सकता। फिर भी तुम्हारी इच्छा से हम उनको क्षति पहुंचाने की चेष्टा करेंगे। ऐसा कहकर वे चले गए।
__ (श्लोक ४१४-४१८) क्षरण मात्र में पृथ्वी से कूदकर समुद्र जैसे आकाश में आ गया हो इस प्रकार काजल से मेघ आकाश में छा गए । विद्युत रूप तर्जनी अंगुली से जैसे चक्रवर्ती सैन्य का तिरस्कार कर रहे हों एवं मेघनिनाद द्वारा क्रुद्ध होकर बार-बार उनका अपमान कर रहे हों ऐसे वे दिखाई देने लगे । सैन्य को चूर्ण करने के लिए वह सेना जहां तक विस्तृत थी वहां तक संचारित वज्र शिला से मेघ महाराज की छावनी पर छा गए और लौह खण्ड-से तीक्ष्ण अग्रभाग-विशिष्ट तीर और दण्ड रूप पानी बरसाने लगे। सारी धरती वर्षा के जल में डूब गई। रथ नौका की भांति, हस्ती आदि मकर की भांति प्रतीत होने लगे । सूर्य मानो किसी दिशा में चला गया। पर्वत जैसे कहीं खो गए हों इस प्रकार मेघों का अन्धकार काल-रात्रि-सा दिखाई देने लगा। ऐसा लगा मानो पृथ्वी पर पुनः युग्म धर्म प्रवर्तित होने वाला हो ।
__ (श्लोक ४१९-४२१.) ऐसी अनिष्टकारी दुःखदायी वष्टि देखकर चक्रवर्ती ने कृपापात्र भृत्य की तरह अपने हाथों से चर्म रत्न को स्पर्श किया। उत्तरी