Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उसी प्रकार उस पर गो-शीर्ष चन्दन की पूज्यता शीर्षक तिलक अंकित किया। फिर साक्षात् विजय लक्ष्मी की तरह पुण्य, गन्ध, वासचूर्ण, वस्त्र और रत्नालंकार से उसका पूजन किया। इसके सम्मुख रजत अक्षत से अष्ट मंगल चित्रित किया और भिन्न-भिन्न मंगल से आठ दिक्लक्ष्मी को आबद्ध कर लिया। उसके निकट पांच वर्ण के फूलों का उपहार रखकर पृथ्वी को विचित्र वर्णमयी बना दिया। शत्रु के यश की भांति यत्नपूर्वक चन्दन कर्पूरमय उत्तम धूप जलाया । तदुपरान्त चक्रधारी भरत ने चक्र की तीन प्रदक्षिणा दी। गुरु भावना से सात-पाठ कदम पीछे हटकर स्नेहास्पद जैसे नमस्कार करता है उसी प्रकार बायां गोंडा मोड़कर दाहिना हाथ जमीन पर रखकर चक्र को नमस्कार किया। फिर हर्ष ही ने मानो रूप धारण किया है इस प्रकार पृथ्वीपति भरत ने वहां अवस्थित होकर चक्र का अष्टाह्निका उत्सव किया। कारण, पूज्य भी जिसकी पूजा करते हैं उसकी पूजा कौन नहीं करेगा ? .
(श्लोक १-१३) उसी चक्र को दिग्विजय के लिए नियुक्त करने की इच्छा से राजा मंगल स्नान के लिए स्नानागार में गए। आभरण खोलकर स्नान योग्य वस्त्र परिधान कर भरत पूर्वाभिमुखी होकर स्नान-सिंहासन पर बैठे। फिर कहां मालिश करना कहां नहीं करना के जानकार मालिश कलाभिज्ञ ने देववृक्ष के पुष्प के मकरकन्द तुल्य सुगन्धित सहस्रपाक तेल का महाराज के शरीर पर मालिश किया। मांस में, अस्थि में,चर्म में और रोमकूप को सुखदायी चार प्रकार की मालिश, मृदू, मध्य और दृढ़ इस प्रकार तीन प्रकार के हस्त लाघव से उन्होंने राजा की देह में अच्छी तरह से की। फिर दर्पण की भांति स्वच्छ और कान्तिमान उन महीपति के शरीर में उन लोगों ने सूक्ष्म दिव्य चर्ण का उबटन लेपन किया। उस समय ऊँचे मृणाल के कमल शोभित सुन्दर वापिका की भांति कुछ पुरांगनाएं कलश लिए खड़ी हई तो कुछ जल ही कलश का आधार हया हो ऐसे रजत कलश लिए। कुछ स्त्रियों ने सुन्दर हाथों में लीलामय नील कमल की भ्रान्ति उत्पन्नकारी इन्द्रनील मरिण के कलश लिए थे तो कुछ सुभ्र बालाओं ने अपने नखरत्नों की कान्तिरूप जल से अधिक शोभा सम्पन्न दिव्य रत्नमय कुम्भ । इन समस्त पुरांगनानों ने देवतागण जिस प्रकार जिनेन्द्र का स्नान कराते हैं उसी अनुक्रम से सुगन्धित