Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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धौंकनी की तरह फूलने लगी और प्रोष्ठ सर्प की तरह फुफकार उठे । ललाट को प्रकाश के धूमकेतु की तरह रेखांकित कर सपेरा जैसे सर्प को उठाता है उसी प्रकार दाहिने हाथ से अस्त्र उठाकर बायां हाथ शत्र ु के ललाट रूपी ग्रासन पर पटक व विषज्वाला-सी वाणी में वे बोले : ( श्लोक १०४-११५) 'स्वयं को वीर मानने वाले और अप्रार्थित वस्तु की प्रार्थना करने वाले किस कुबुद्धि ने मेरी सभा में तीर फेंका है ? वह कौन है जो एरावत हाथी के दांतों को तोड़कर उससे कर्ण कुण्डल बनाना चाहता है ? वह कौन है जो गरुड़ के पंखों का मुकुट धारण करना चाहता है ? वह कौन है जो नाग मस्तक स्थित मरिण को उखाड़ना चाहता है ? सूर्याश्व को हरण करने का इच्छुक वह कौन है ? उसका अहंकार मैं उसी भाँति चूर-चूर करूंगा जैसे गरुड़ सर्प के प्राण लेता है ।' ऐसा कहकर मगधपति उठ खड़े हुए । विवर से निकलते सर्प की भाँति उन्होंने म्यान से तलवार निकाली और धूमकेतु की भ्रम सृष्टि करते हुए वे तलवार घुमाने लगे । क्रोध की अधिकता से उनका सारा परिवार इस प्रकार उठ खड़ा हुआ जिस प्रकार हवा के वेग से समुद्र में तरंगें उठती हैं । कोई अपने पौरुष से आकाश को कृष्ण विद्युन्मय तो कोई चमकते अस्त्र-शस्त्र से ग्राकाश को श्रनेक चन्द्रमय करने लगा । कोई मृत्यु दन्त द्वारा निर्मित हुई हो ऐसी वरछी को चारों ओर उत्क्षिप्त करने लगा तो कोई अग्नि जिह्वा तुल्य फरसे को घुमाने लगा । किसी ने राहु की तरफ भयंकर भाग्य-से मुद्गर को ग्रहण किया । कोई वज्र तीक्ष्ण त्रिशूल और यमराज के दण्ड से प्रचण्ड दण्ड को उठाने लगा । कोई शत्रु विनाश के कारण रूप स्व हाथों को ठोकने लगा तो कोई मेघनाद की तरह उच्च स्वर से सिंहनाद करने लगा । कोई 'मारो-मारो' चिल्लाने लगा तो कोई 'पकड़ो - पकड़ो' बोलने लगा । कोई 'खड़े रहो- खड़े रहो' कहने लगा । तो कोई 'चलो चलो' बोलने लगा । इस प्रकार मगधपति का समस्त परिवार कोपवश नाना प्रकार के विक्रम प्रदर्शन करने लगा । तब अमात्य ने भरत महाराज के उस तीर को उठाकर भली-भाँति देखा । उस पर मन्त्राक्षर से उदार सार सम्पन्न निम्न अक्षर लिखे थे :
'सुरासुर और मनुष्यों के साक्षात् ईश्वर श्री ऋषभदेव स्वामी का पुत्र भरत चक्रवर्ती तुम्हें आदेश देता है कि यदि तुम स्वराज्य,