Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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भगवान् ऋषभ मौन धारण कर आर्य और अनार्य समस्त देशों में विचरण करने लगे । एक वर्ष निराहार रहकर प्रभु चिन्तन करने लगे-तेल के द्वारा जिस प्रकार दीप प्रज्वलित रहता है, जल के द्वारा वृक्ष जीवन्त रहता है उसी प्रकार प्राणी मात्र का शरीर भी आहार के द्वारा ही टिका रहता है । अतः साधुयों को बयालीस दोषों से रहित मधुकरी वृत्ति से भिक्षा ग्रहण कर उपयुक्त समय में आहार ग्रहण करना उचित है । एतदर्थ विगत दिनों की भाँति अब भी यदि मैं प्रहार ग्रहरण नहीं करूँगा तो मेरा शरीर टिक सकेगा पर चार हजार साधु जिस प्रकार प्रहार न मिलने के कारण पीड़ित होकर भ्रष्ट हो गए उसी प्रकार अन्य साधु भी भ्रष्ट हो जाएँगे । ऐसा सोचकर प्रभु समस्त नगर के मण्डल रूप गजपुर ( हस्तिनापुर ) नगर में भिक्षा के लिए अग्रसर हुए। वहाँ बाहुबली के पुत्र, सोमप्रभ राजा के पुत्र श्रेयांस ने स्वप्न देखा कि चारों ओर से कृष्णवर्ण बने सुवर्णगिरि को दुग्ध भरे घड़ों से अभिषेक कर उन्होंने उसे उज्ज्वल वर्ण बना दिया है । उसी दिन सुबुद्धि नामक श्रेष्ठी ने स्वप्न में देखा —श्रेयांस कुमार ने सूर्य से निर्गत सहस्र किरणों को पुनः सूर्य में संस्थापित कर दिया । परिणामतः सूर्य और देदीप्यमान हो उठा । सोमप्रभ राजा ने देखा - अनेकों शत्रों के द्वारा घिरे हुए एक राजा ने उनके पुत्र की सहायता से विजय प्राप्त की। तीनों ही अपने स्वप्नों की बातें परस्पर सुनाने लगे, किन्तु स्वप्न का कारण कोई नहीं बता सका। उसी स्वप्न का कारण बताने और फल देने के लिए ही मानो प्रभु ने उस दिन भिक्षा के लिए नगर में प्रवेश किया । नगरवासियों ने एक वर्ष तक निराहार रखते हुए भी प्रभु को वृषभ गति से सानन्द प्राते हुए देखा । ( श्लोक २३८ - २५० )
नगरवासियों ने ज्योंही प्रभु को प्राते देखा वे दौड़कर उसी प्रकार निकट गए जिस प्रकार लोग अपने विदेशागत बन्धु को आते देखकर जाते हैं । उनमें से एक ने कहा - 'प्रभु, आप मेरे घर पधारने का अनुग्रह करें कारण बसन्त ऋतु की भाँति बहुत दिनों बाद आपके दर्शन हुए हैं ।' दूसरा बोला - 'हे स्वामी, स्नान का जल, विलेपन तेलादि और परिधान वस्त्र प्रस्तुत है, ग्राप स्नान कर वस्त्र परिधान करें ।' तीसरे ने कहा - 'हे भगवान्, मेरे घर उत्तम केशर, कस्तूरी, कर्पूर, चन्दन है उनका व्यवहार कर आप मुझे कृतार्थ करें ।' चौथा बोला – 'हे जगद्भूषण, दया कर आप मेरे वस्त्रा
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