Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अष्टाह्निका महोत्सव सहित ऋषभादि अर्हतों की शाश्वती प्रतिमाओं की पूजा की।
(श्लोक ६३०-६३४) उस अंजन गिरि के चारों कोनों पर सरोवर थे । उनमें से प्रत्येक में स्फटिक मरिण के दधिमुख नामक चार पर्वत थे। उन चार पर्वतों के ऊपरी चैत्य में शाश्वत अर्हतों की प्रतिमा थी। शकेन्द्र के चार दिक्पालों ने अष्टाह्निका महोत्सव सहित उन प्रतिमाओं का विधिवत् पूजन किया।
(श्लोक ६३५-६३६) ईशानेन्द ने उत्तर दिशा के नित्य रमणीक ऐसे रमणीय नामक अंजन गिरि पर अवतरण किया और इसी पर्वत स्थित चैत्य में उपर्युक्त विधि से अष्टाह्निका उत्सव सहित पूजा की। उनके दिकपालों ने भी उस पर्वत के चारों ओर सरोवर के दधिमुख पर्वत के चैत्य में विराजित शाश्वत् प्रतिमाओं की पूजा की।
(श्लोक ६३७-६३९) चमरेन्द ने दक्षिण दिशा के नित्योद्योत नामक अंजनादि पर्वत पर अवतरण किया। रत्न द्वारा नित्य प्रकाशमान उस पर्वत के चैत्य पर विराजित शाश्वती प्रतिमा का उन्होंने अत्यन्त भक्तिपूर्वक पूजन किया। उस पर्वत के चारों ओर स्थित सरोवर के दधिमुख पर्वत पर के चैत्य में विराजित प्रतिमा की अचल चित्त से उत्सव सहित चमरेन्द्र के चारों लोकपालों ने पूजा की।
- (श्लोक ६४०.६४२) वलि नामक इन्द ने पश्चिम दिशा के स्वयंप्रभ नामक अंजन पर्वत पर मेघ की भांति प्रभाव सहित अवतरण किया। उन्होंने उस पर्वत के चैत्य पर अवस्थित देवताओं के नेत्रों को पवित्र करने वाली शाश्वती ऋषभादि अर्हत् प्रतिमाओं का उत्सव किया । उनके चारों लोकपालों ने भी उस पर्वत के चारों ओर रहे हुए सरोवर के मध्य दधिमुख नामक पर्वत स्थित चैत्य में विराजित शाश्वती जिन प्रतिमाओं का उत्सव किया।
(श्लोक ६४३-६४५) इस प्रकार समस्त देवता नन्दीश्वर द्वीप में उत्सवादि कर यात्री की भांति जिस प्रकार पाए थे उसी प्रकार अपने-अपने स्थान को प्रत्यावर्त्तन कर गए।
-- (श्लोक ६४६) इधर सवेरा होते ही मां मरुदेवी जागृत हुई। उन्होंने रात्रि में देवताओं के गमनागमन का इस प्रकार वर्णन किया जैसे स्वप्न