Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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गए।
विनीत हैं। उन्होंने कुबेर को उनके निवास के लिए विनीता नामक नगरी की स्थापना का आदेश दिया। फिर इन्द्र देवलोक को लौट
(श्लोक ९०५-९११) कुबेर ने बारह योजन दीर्घ और नौ योजन प्रशस्त विनीता नामक नगरी स्थापित की । विनीता का दूसरा नाम अयोध्या रखा । यक्षपति कुबेर ने उस नगरी को अक्षय वस्त्रालङ्कार और धन-धान्य से पूर्ण किया। उस नगरी में हीरक,इन्द्रनील और वैदूर्यमरिण निर्मित बृहद्-वृहद् अट्टालिकाए अपने किरण जाल से दीवालरहित आकाश में भी विचित्र चित्ररचना कर रही थीं। मेरु पर्वत के शिखर तुल्य उच्च स्वर्ण अट्टालिकाएं पताकाओं से सुशोभित होकर वन्दनवार की लीला को विस्तृत कर रही थीं। दुर्ग प्राकार के ऊपर संयुक्त क्षुद्र स्तम्भ श्रेणी माणिक्य द्वारा निर्मित हुई थीं। वे विद्याधर सुन्दरियों के लिए अनायास ही दर्पण का कार्य कर रही थीं। उस नगर के प्रत्येक गृह-प्रांगन में मुक्ता के स्वस्तिक अंकित थे। उन मुक्ताओं से लड़कियां कर्कटक खेल खेलती थीं। उस नगरी के उद्यान से वृहद्-वृहद् वृक्ष से दिन-रात धक्का खाकर खेचरों के विमान कुछ क्षण के लिए विहग नीड़ों का भ्रम उत्पन्न करते थे। विपरिणयों और गृहों स्थित रत्नराशि देखकर शिखर सम्पन्न रोहणाचल की शंका हो जाती। गृह वापिकाएं जलक्रीड़ारत सुन्दरियों की मुक्तामाला छिन्न हो जाने से ताम्रपर्णी शोभा धारण करते थे। वहां के श्रेष्ठी इतने धनी थे कि श्रेष्ठी पुत्रों को देखकर लगता जैसे स्वयं कुबेर वहां वाणिज्य करने आए हैं। रात्रि के समय चन्द्रकान्त मरिण की दीवाल से प्रवाहित जल से धूल स्थिर हो जाती। अयोध्या नगरी अमृत तुल्य जलपूर्ण असंख्य कुनों, वापी और सरोवरों से नवीन अमृत के कुण्ड पूर्ण नागलोक-सी शोभित होती थी।
(श्लोक ९१२-९२३) प्रभु जब बीस लाख पूर्व के हुए तब प्रजा पालन के लिए राजा हए । मन्त्रों के मध्य जैसे ॐकार है वैसे ही राजाओं के मध्य प्रथम राजा वृषभ अपनी सन्तान की ही तरह प्रजा का पालन करने लगे। उन्होंने दुष्टों को दण्ड देने के लिए और सत्पुरुषों के पालन के लिए उद्यमी मन्त्री नियुक्त किए। वे प्रभु के अङ्गस्वरूप थे। महाराजा ऋषभ ने अपने राज्य की चोरी आदि से रक्षा करने के लिए इन्द्र