Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अनासक्त होने पर भी प्रभु तदुपरान्त अपनी दोनों पत्नियों के साथ काल व्यतीत करने लगे। कारण, शातावेदनीय कर्मों का जो पहले बन्धन हो गया था वह बिना भोगे क्षय होने वाला नहीं था । विवाहोपरान्त प्रभु ने छह लाख से कुछ कम समय तक दोनों पत्नियो के साथ सुखभोग में निरत रहे। (श्लोक ८८२-८८३)
उसी समय बाहु और पीठ के जीव स्वार्थ सिद्धि विमान से च्युत होकर सुमंगला की कुक्षि में एवं सुबाहु और महापीठ के जीव सुनन्दा की कुक्षी में युग्म रूप से उत्पन्न हुए। मरुदेवी की भांति गर्भ के माहात्म्य को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न सुमंगला देवी ने देखे । सुमंगला ने स्वप्न के विषय में प्रभु को बताया । प्रभु ने कहा-'तुम्हारे चक्रवर्ती पुत्र होगा।' (श्लोक ८८४-८८७)
___ समय प्राप्त होने पर पूर्व दिशा जिस प्रकार सूर्य और सन्ध्या को जन्म देती है उसी प्रकार सुमंगला देवी ने निज कान्ति से दिक्समूह प्रकाशकारी दो बच्चों को जन्म दिया। उनमें पुत्र का नाम भरत, पुत्री का नाम ब्राह्मी रखा गया। (श्लोक ८८८)
वर्षा ऋतु जैसे मेघ और विद्यत को जन्म देती है उसी प्रकार सुनन्दा ने सुन्दर प्राकृतियुक्त बाहुबली और सुन्दरी को जन्म दिया।
(श्लोक ८८९) तदुपरान्त विदुर पर्वत की धरती जैसे रत्न उत्पन्न करती है उसी प्रकार सुमंगला ने उनचास युग्म पुत्रों को जन्म दिया। महापराक्रमी और उत्साही वे बालक क्रीड़ा करते हुए विन्ध्य पर्वत के हस्तिशावकों की तरह वद्धित और पुष्ट होने लगे । वृक्ष जैसे अनेक शाखाओं से शोभित होता है उसी प्रकार अपने पुत्रों से परिवत भगवान् ऋषभ सुशोभित होने लगे।
(श्लोक ८९०-८९२) _प्रभात के समय जिस प्रकार प्रदीप का आलोक कम हो जाता है उसी प्रकार काल दोष से कल्पवृक्ष का प्रभाव कम होने लगा। अश्वत्थ वृक्ष में जैसे लाक्षाकरण उत्पन्न होते हैं उसी प्रकार युगलिकों के मध्य धीरे-धीरे क्रोधादि कषाय उत्पन्न होने लगे । सर्प जैसे तीन प्रकार की ताड़नामों की परवाह नहीं करता उसी प्रकार युगलिक भी हाकार, माकार, धिक्कार तीन प्रकार की नीतियों की उपेक्षा करने लगे । तब युगलिकों के मध्य जो विचक्षण थे वे प्रभु के निकट