Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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इनमें सुविधि वैद्य का पुत्र पिता से औषधि और रसायन शास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर अष्टाङ्ग आयुर्वेद का ज्ञाता बना । हाथी के मध्य जैसे ऐरावत, नवग्रहों में जैसे सूर्य अग्रणी है वैसे ही वह वैद्यों में ज्ञानवान्, निर्दोष विद्या का ज्ञाता और अग्रणी था। वे छह मित्र सहोदर भाइयों की तरह निरन्तर साथ-साथ रहते, एक-दूसरे के घर जाते रहते ।
(श्लोक ७२९-७३१) एक दिन वे वैद्यपुत्र जीवानन्द के घर बैठे थे। उसी समय वहाँ एक मुनि भिक्षा ग्रहण करने आए। ये पृथ्वीपाल राजा के पुत्र थे। नाम था गुणाकर । गुणाकर मलिनता की भाँति राजसम्पदा का परित्याग कर शम साम्राज्य अर्थात् दीक्षा ग्रहण कर ली थी। ग्रीष्मकाल में जैसे नदी सूख जाती है उसी प्रकार तपस्या से उनका शरीर शुष्क हो गया । असमय में एवं अपथ्य भोजन से उन्हें कृमि कुष्ठ नामक रोग हो गया था। सारी देह में वह रोग फैल गया था। तब भी वे महात्मा कभी भिक्षा में औषध नहीं माँगते । कहते हैं, 'मुमुक्षु कभी शरीर की परिचर्या नहीं करते।'
(श्लोक ७३२-७३५) ___ गोमूत्रिका विधान से घर-घर भिक्षाचारी उन मुनि को दो दिन के उपवास के पश्चात् अन्न जल के लिए उन्होंने उन्हें अपने आँगन में आते देखा । उन्हें देखकर संसार में अद्वितीय ऐसे महीधर कुमार ने वैद्य जीवानन्द से परिहास करते हुए कहा-'तुम्हें रोग का ज्ञान है, प्रोषधि का ज्ञान है, चिकित्सा भी तुम अच्छी करते हो; किन्तु तुममें दया जरा भी नहीं है। धन के बिना गरिएका जिस प्रकार किसी के मुख की ओर नहीं देखती तुम भी उसी प्रकार धन के बिना दु:खी व्यक्ति के प्रार्थना करने पर भी उसकी ओर नहीं देखते । विवेकी मनुष्य को केवल धन का लोभी बनना उचित नहीं है। कभी धर्म समझकर भी चिकित्सा करनी चाहिए। तुम्हारे रोग-निदान और चिकित्सा-ज्ञान को धिक्कार है यदि तुम ऐसे सत्पात्र अस्वस्थ मुनि की ओर नहीं देखते हो।'
__ (श्लोक ७३६-७४१) यह सुनक र विज्ञान रत्न के रत्नाकर तुल्य जीवानन्द बोला'तुमने मुझे कर्तव्य स्मरण करवा कर बहुत अच्छा किया । तुम्हें धन्यवाद ।'
(श्लोक ७४२),