Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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'वास्तव में संसार में ब्राह्मण प्रायः द्वेषरहित नहीं होते, वणिक अवंचक नहीं होते, मित्र-मण्डली ईाहीन नहीं होती, शरीरधारी नीरोग नहीं होते, विद्वान् धनवान नहीं होते, गुणवान निरभिमानी नहीं होते, स्त्री अ-चपल नहीं होती, राजपुत्र उत्तम चरित्रवान नहीं होते।
(श्लोक ७४३-७४४) 'ये मुनि चिकित्सा के योग्य हैं; किन्तु वर्तमान में मेरे पास औषध के उपकरण नहीं है। यही इसका अन्तराय है । इस व्याधि को दूर करने के लिए लक्षपाक तेल, गोशीर्ष चन्दन और रत्नकम्बल की आवश्यकता पड़ती है। मेरे पास लक्षपाक तेल है; किंतु अन्य वस्तुएं नहीं हैं । वे वस्तुए तुम लोग ला दो।'
(श्लोक ७४५-७४६) 'वे दोनों वस्तुएं हम लाएंगे' कहकर पाँचों मित्र बाजार गए । मुनि भी अपने निवास स्थान पर लौट गए। (श्लोक ७४७)
वे पाँचों मित्र बाजार जाकर एक वृद्ध वणिक को बोले'हमें गोशीर्ष चन्दन और रत्नकम्बल चाहिए। मूल्य लेकर हमें ये वस्तुएँ दो।'
(श्लोक ७४८) वह वृद्ध वणिक बोला-'इन दोनों वस्तुओं में प्रत्येक का मूल्य लक्ष सुवर्ण मुद्रा है अर्थात् दोनों वस्तुओं का मूल्य दो लक्ष सुवर्ण मुद्रा हुआ। मूल्य ले पायो, वस्तु ले जायो; किन्तु पहले यह बतायो कि तुम्हें ये वस्तुएँ क्यों चाहिए ?' (श्लोक ७४९)
वे बोले-'जो मूल्य लगे लो, हमें दोनों वस्तुएं दो। एक महात्मा की चिकित्सा के लिए हमें ये दोनों वस्तुएँ चाहिए।'
(श्लोक ७५०) ___ यह सुनकर वणिक आश्चर्यचकित हो गया। ग्रानन्द से उसकी आँखों में जल भर पाया और शरीर रोमांचित हो गया। वह सोचने लगा-'कहाँ उन्माद अानन्द और तारुण्य भरा इनका यौवन और कहाँ वयोवृद्ध-सा इनका विवेक और विचारशक्ति । जो काम मेरे जैसे वार्द्धक्य जर्जरित व्यक्ति को करना चाहिए वह काम ये कर रहे हैं और अदम्य उत्साह से करने के लिए अग्रसर हो
(श्लोक ७५१-७५३) ऐसी विवेशना कर वह वृद्ध वणिक उनसे बोला-'हे विवेवशाली युवकगण ! गोशीर्ष चन्दन और रत्नकम्बल तुम ले जायो ।