Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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र प्रवशिष्ट एवं दिक्कुमार देवों के इन्द्र अमित और ग्रमितवाहन भी आए । ( श्लोक ४६१-४६४ )
व्यन्तर देवताओं में पिशाचों के इन्द्र काल और महाकाल, भूतों के इन्द्र सुरूप और प्रतिरूप, यक्षों के इन्द्र पूर्णभद्र और मणिभद् राक्षसों के इन्द्र भीम और महाभीम, किन्नरों के इन्दु किन्नर और किम्पुरुष, किम्पुरुषों के इन्द्र सत्पुरुष और महापुरुष, महोरगों के इन्द्र प्रतिकाय र महाकाय, गन्धर्वों के इन्दु गीतरति और गीतयशा, अप्रज्ञप्ति और पंच प्रज्ञप्ति ग्रादि व्यंतर देवों के ग्रन्य ग्राठ निकायों (जिन्हें वारण व्यंतर कहा जाता है) के सोलह इन्दु जिनमें प्रज्ञप्तियों के इन्दू सन्निहित हैं और समानक, पंच प्रज्ञप्तियों के इन्दू धाता और विधाता, ऋषिवादितों के इन्द्र ऋषि और ऋषिपालक, भूतवादिनों के इन्द्र ईश्वर और महेश्वर, क्रन्दितों के इन्द्र सुवत्सक और विशालक, महाक्रन्दितों के इन्दू हास और हासरति, कुष्काण्डकों के इन्द्र श्वेत और महाश्वेत, पावकों के इन्द्र पावक और पावकपति एवं ज्योतिष्कों के सूर्य और चन्द्र इन्हीं दो नामों के प्रसंख्य इन्द्र इस प्रकार कुल चौसठ इन्द्र एक साथ मेरु शिखर पर आए ।
(श्लोक ४६५-४७४)
फिर अच्युतेन्द्र जिनेश्वर के जन्मोत्सव के उपकरण लाने के लिए अभियोगिक देवों को आदेश दिया । वे तुरन्त ईशान दिशा में गए। वहां वेत्रिय समुद्घात से मुहूर्त्त भर में उत्तम पुद्गल परमाणु प्राकृष्ट कर वे सुवर्ण के, रजत के, रत्न के, सुवर्ण और रजत के, सुवर्ण और रत्नों के, सुवर्ण, रजत और रत्नों के, रजत और रत्नों के और इसी प्रकार मिट्टी के अतः आठ प्रकार के प्रत्येक ही एक हजार आठ ( कुल ८०६४ ) एक योजन ऊँचे सुन्दर कलशों का निर्माण किया । कलशों की संख्या के अनुपात में प्राठ प्रकार के पदार्थों की भारियां दर्पण, रत्न - करण्डिका, सुप्रतिष्ठक थाल, रात्रिका और पुष्पों की डालियां प्रत्येक ही ८०६४ होने से ५६४४८ बर्तन और कलशों सहित ६४५१२ जैसे पूर्व ही निर्मित कर लिए हों इस प्रकार शीघ्र तैयार कर वहां ले आए ।
( श्लोक ४७५ - ४८० )
फिर अभियोगिक देवतागण उन कलशों को लेकर क्षीर-समुद्र के जल से वर्षा के जल की भांति भरकर वहां से पुण्डरीक उत्पल