Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
[६६
उसी समय एक चारण राजसभा में प्राया और शङ्खविनिन्दित कण्ठ में बोला - 'महाराज, आज आपके उद्यान की उद्यानपालिका की भाँति पुष्प संभार से सुशोभित कर वसन्त-लक्ष्मी काविर्भाव हुआ है । इसलिए प्रस्फुटित पुष्प सुगन्ध से दिग्-प्रामोदितकारी उस उद्यान को, इन्द्र जिस प्रकार नन्दनवन को सुशोभित करता है उसी प्रकार, आप भी सुशोभित कीजिए । ( श्लोक ८ - १० )
चारण की बात सुनकर राजा ने द्वारपाल को आदेश दिया कि नगर में घोषणा करवादी । कल प्रातः सभी राजोद्यान में आएँ । फिर उन्होंने सागरचन्द्र से कहा - 'तुम भी कल सुबह उद्यान में माना ।' स्नेह इसी प्रकार अभिव्यक्त होता है । (श्लोक ११-१२) राजा से विदा लेकर सागरचन्द्र प्रानन्दित मन से घर लौटा और उसने अपने मित्र अशोकदत्त को राजा का प्रदेश सुनाया ।
(श्लोक १३ )
दूसरे दिन प्रातः राजा सपरिवार उद्यान में गए । नगरजन भी वहाँ उपस्थित हुए । प्रजा तो राजा का ही अनुकरण करती है । जैसे मलय पवन सहित वसन्त ऋतु का श्रागमन होता है वैसे ही सागरचन्द्र निज मित्र अशोकदत्त के साथ उद्यान में पहुंचा । वहाँ सभी कामदेव के अधीन होकर पुष्प आहरण कर नृत्य गीतादि क्रीड़ा करने लगे । स्थान-स्थान पर क्रीड़ारत जनता कामदेव के अनुचरों की भाँति ही लग रही थी । पद-पद पर गीत और वाद्यध्वनि इस प्रकार उत्थित हो रही थी मानो वह अन्य इन्द्रियों के विषयों पर विजय प्राप्त करने के लिए ही उत्थित हो रही हो ।
( श्लोक १४-१८ )
उसी समय समीप के ही किसी वृक्ष के अन्तराल से स्त्रीकण्ठ से निःसृत ध्वनि 'रक्षा करो, रक्षा करो' सुनाई पड़ी । सुनते ही सागरचन्द्र उस प्रोर दौड़ा। वहाँ जाकर देखा - बाघ जिस प्रकार हरिणी का गला पकड़ लेता है उसी प्रकार दुष्ट लोगों ने पूर्णभद्र श्रेष्ठी की कन्या प्रियदर्शना को पकड़ रखा है । सागरचन्द्र ने उनमें से एक के हाथ से छुरा उसी प्रकार छीन लिया जिस प्रकार साँप का गला पकड़ कर मरिण बाहर कर ली जाती है । उसकी इस साहसिकता को देखकर सभी दुष्ट भाग छूटे । जलती हुई आग को देखकर तो बाघ भी भाग जाता है ।
( श्लोक १९ - २३)