Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 1
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अन्य देवता दक्षिण दिशा की सीढ़ियों से चढ़कर अपने-अपने आसन पर जा बैठे। स्वामी के समीप अपने-अपने आसनों का उल्लंघन नहीं होता।
(श्लोक ३८०-३८४) सिंहासन पर बैठे शचीपति इन्द्र के सम्मुख दर्पण प्रादि अष्ट मांगलिक और माथे पर चांद-सा उज्ज्वल छत्र शोभित होने लगा। दोनों ओर से चामर इस प्रकार डुलाए जा रहे थे मानो वे दोनों चलमान हंस हों। पर्वत जैसे निर्भर से शोभित होता है उसी प्रकार छोटी-छोटी पताकाओं से सुशोभित एक हजार योजन उच्च इन्द्रध्वज विमान के आगे शोभित था। उस समय कोटि सामानिक देवतानों से परिवृत इन्द्र इस प्रकार सुशोभित था जैसे नदी प्रवाह से परिवत समुद्र शोभा पाता है। अन्यान्य विमानों से परिवृत वह विमान इस भांति शोभायमान था जैसे अन्य चैत्यों से परिवत मूल चैत्य शोभित होते हैं । विमानों की सुन्दर माणिक्यमय दीवालों पर एक का अन्य पर प्रतिबिम्ब लगने से लगता था मानो समस्त विमान एक-दूसरे के मध्य समाहित हो गयी है। (श्लोक ३८५-३९०)
___ चारणों की जय-जयकार से, दुन्दुभि की आवाज से, गन्धर्व और नाटय वाहिनियों के बाजों से सभी दिशानों को प्रतिध्वनित करते उस विमान ने इन्द्र की इच्छा से सौधर्म देवलोक के मध्य होते हुए आकाश को विदारित कर चलना प्रारम्भ किया। फिर सौधर्म देवलोक की उत्तर दिशा से तिर्यक गति में उस विमान ने नीचे उतरना प्रारम्भ किया। वह विमान एक लक्ष योजन विस्तृत होने से जम्बूद्वीप का आच्छादन-सा प्रतीत हो रहा था उस समय देवतागरण एक-दूसरे को इस प्रकार बोलते हुए चलने लगे-हे हस्तिवाहन, दूर हो जायो । मेरा सिंह तुम्हारे हस्ती को सहन नहीं करेगा। हे अश्वारोही, तुम जरा दूर हट जायो । कारण, मेरा ऊँट क्रुद्ध है। हे मृगवाहन, तुम पास मत आ जाना नहीं तो मेरा बाघ उस पर आक्रमण कर बैठेगा। हे सर्पवाहन, तुम अन्यत्र चले जायो नहीं तो मेरा वाहन गरुड़ उसे भक्षण कर सकता है । हे सोम्य, मेरे सम्मुख आकर मेरी गति को क्यों अवरुद्ध कर रहे हो ? मेरे और तुम्हारे विमान को टकराना चाहते हो क्या ? हे भद्र, मैं पीछे रह गया है। स्वर्गाधिप तीव्र गति से चले जा रहे हैं, इसलिए मेरा विमान यदि तुम्हारे विमान को धक्का लगाए तो क्रोध मत करना।