Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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क्रमांक विषय
१७५ अभयकुमार ने कहानी सुना कर चोर
पकड़ा
१७६ मातंग राजा का गुरु बना
१७७ दुर्गन्धा का पाप और उसका फल १७८ दुर्गन्धा महारानी बनी
१७९ आर्द्रकुमार का चरित्र
१८० आर्द्रकुमार का पूर्वभव १८१ आर्द्रकुमार की विरक्ति पिता का
अवरोध
१९२ सती मृगावती चरित्र
१६३ पत्नी की माँग
१९४ सती की सूझबूझ
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( ११ )
पृष्ठ क्रमांक
२७०
२७३
२७४
२७५
२७७
२७६
11
१८२ आर्द्रमुनि का पतन
२८०
१८३ आर्द्रमुनि की गोशालक आदि से चर्चा २८३ १८४ आर्द्रमुनि की बौद्धों से चर्चा
२८६
१८५ वैदिकों से चर्चा
२८७
२८८
१८६ एकदण्डी से चर्चा १८७ हस्ति तापस से चर्चा
२८९
२९०
१८८ ऋषभदत्त देवानन्दा १८६ जमाली चरित्र
२६१
१६० जमाली अनगार के मिथ्यात्व का उदय २९२ १९१ चित्रकार की कला साधना
२९५
२६८
२९९
३००
१९५ मृगावती और चन्द्रप्रद्योत को धर्मोपदेश ३०१ १९६ यासा सासा का रहस्य x x स्वर्णकार
की कथा
१९७ आदर्श श्रावक आनन्द
१९८ गणधर भगवान् ने क्षमापना की
विषय
१९९ श्रमणोपासक कामदेव को देव ने घोर उपसर्ग दिया
३०७
२०० देव पराजित हुआ
.३०६.
२०१ साधुओं के सम्मुख श्रावक का आदर्श ३१० २०२ चुलनी पिता श्रावक को देवोपसर्ग
33
२०३ सुरादेव श्रमणोपासक
३०१
३०४
३०७
२०४ चुल्लशतक श्रावक
२०५ श्रमणोपासक कुंडकोलिक का देव से
विवाद
२०६ श्रमणोपासक सद्दालपुल कुंभकार २०७ भगवान् और सद्दालपुत्र की चर्चा २०८ गोशालक निष्फल रहा २०९ महाशतक श्रमणोपासक
२१० रेवती की भोगलालसा और क्रूरता २११ नन्दिनी पिता श्रमणोपासक
"
२१२ शालिहियापिता श्रमणोपासक
२१३ चन्द्र सूर्यावतरण X x आश्चर्य दस २१४ महासती चन्दनाजी और मृगावतीजी
को केवलज्ञान
२१५ जिन प्रलापी गोशालक
२१६ गोशालक ने आनन्द स्थविर द्वारा को धमकी दी भगवान् २१७ श्रमणों को मौन रहने का भगवान् का आदेश
२१८ गोशालक का आगमन और मिथ्या
प्रलाप
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पृष्ठ
३११
३१२
३,१४.
३१५
३१६.
३१९
37
३२१
३२३
३२४
३२५
३२७
३२७
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