Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 14
________________ ४३३ क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक विषय पृष्ठ २६४ उदयन नरेश चरित्र ३८२ । २८६ कूणिक की मृत्यु और नरक गमन ४१२ २६५ उज्जयिनी पर चढ़ाई और विजय ३८४ | २८७ वल्कलचीरी चरित्र ४१३ २६६ क्षमापना कर जीता हुआ राज्य भी २८८ बन्धु का संहरण | ४१५ लौटा दिया ३८५ २८६ भ्रातृ-मिलन ४१८ २६७ अभी चिकुमार का वैरानुबन्ध । ३८७ २९० भवितव्यता का आश्चर्यजनक परिपाक ४२० ३६८ राज्य-लोभ राजर्षि की घात करवाता है " २९१ प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण ४२१ २६६ कपिल केवली चरित्र ३८८ | २९२ भगवान् श्वेताम्बिका पधारें ४२२ २७० अभयकुमार की दीक्षा ३९२ | २९३ केशीकुमार श्रमण से प्रदेशी का समागम ४२३ २७१ कूणिक ने श्रेणिक को बन्दी बना दिया ३६३ | २९४ केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी की चर्चा ४२४ २७२ श्रेणिक का आत्मघात ३९६ | २९५ प्रदेशी समझा-परंपरा तोड़ी २७३ कूणिक को पितृशोक २९६ राजा श्रमणोपासक बना ४३४ २७४ पिण्डदान की प्रवृत्ति २६७ अब अरमणीय मत हो जाना ४३५ २७५ चम्पानगरी का निर्माण और राज- २९८ प्रदेशी का संकल्प और राज्य के विभाग ४३५ धानी का परिवर्तन २६६ महारानी की घातक योजना पुत्र ने २७६ महायुद्ध का निमित्तxxपद्मावती का हठ ३९८ ठुकराई २७७ शरणागत संरक्षण | ३०० प्राणप्रिया ने प्राण लिये राजा अडिग २७८ चेटक-कूणिक संग्राम ४०२ | रहा २७९ कूणिक का चिंतन और देव आराधन ४०३ । | ३०१ धन्ना सेठ पुत्री सुसुमा और चिलात चोर ४३७ २८० शिलाकंटक संग्राम ३०२ पिंगल निग्रंथ की परिव्राजक से चर्चा ४४०१ २८१ रथमूसल संग्राम ३०३ राषि शिव भगवान् के शिष्य बने ४४३ २८२ वरुण और उसका बाल-मित्र ४०५ ३०४ शंख पुष्कली भगवान् द्वारा समाधान ४४४ २८३ सेचनक जलमरा वेहल्ल-वेहास दीक्षित ३०५ वादविजेता श्रमणोपासक मद्रुक ४४५ ४०७ ३०६ केशीगौतम मिलन सम्वाद और २८४ कुलवालुक के निमित्त से वैशाली का .. एकीकरण ४४७ ४०८ | ३०७ अर्जुन की विडम्बनाxराजगृह में २८५ महाराजा चेटक का संहरण और उपद्रव ४ . ५. ४५२ स्वर्गवास ४११ | ३०८ यक्ष ने दुराचारियों को मार डाला ४५३ ४०४ भंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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