Book Title: Tirthankar Charitra Part 3
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 10
________________ (२) १७४ १४२ १४४ १४७ क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक . विषय... ८३ गर्भ में हलन-चलन बन्द और अभिग्रह १३५ १०७ जासुसों के बन्धन में | ८४ भगवान् महावीर का जन्म ( ५११३६ | १०८ गोशालक की अयोग्यता प्रकट हुई १७४ ८५ बालक महावीर से देव पराजित हुआ १३८ १०९ गोशालक का अभक्ष्य भक्षण १७५ ४६ शिष्य नहीं, गुरु होने के योग्य १३९ ११० अग्नि से भगवान् के पांव झुलसे . .१७६ ८७ राजकुमारी यशोदा के साथ लम्न १४० १११ अनार्य देश में विहार और भीषण ... ८८ गृहस्थावस्था का त्यागमय जीवन उपसर्ग सहन ला १७८ ८६ वर्षीदान और लोकान्तिक देवों द्वारा ११२ गोशालक पृथक् हुआ १७६ __ उद्बोधन ad ११३ गोशालक पछताया १८० ११४ व्यन्तरी का असह्य उपद्रव ६. महाभिनिष्क्रमण महोत्सव १८१७ १४४ ११५ पुनः अनार्य देश में १८३ ९१ भगवान् महावीर की प्रव्रज्या ११६ तिल के पुष्पों का भविष्य सत्य हुआ १८३ ९२ उपसर्गों का प्रारम्भ और परम्परा ११७ वेशिकायन तपस्वी का आख्यान १८४ ९३ भगवान् की उग्र साधना : ११८ वेशिकायन के, कोप से गोशालक ६४ भ. महावीर तापस के आश्रम में १५३ की रक्षा १८६ ६५ शूलपाणि यक्ष की कथा ११९ तेजोलेश्या प्राप्त करने की विधि १८७ ९६ शूलपाणि यक्ष द्वारा घोर उपसर्ग १५७ १२० गोशालक सदा के लिये पृथक् हुआ १८८ ९७ सिद्धार्थ द्वारा अच्छंदक का पाखंड खुला १५८ १२१ तेजोलेश्या की प्राप्ति और दुरुपयोग १८९ ९८ चण्डकौशिक का उद्धार , १२२ तीर्थंकर होने का पाखण्डपूर्ण प्रचार-१८६ ९९ सिंह के जीव सुदृष्ट देव का उपद्रव १६३ १२३ महान् साधक आनन्द श्रावक की १०० कंबल और संबल का वृत्तांत १६४ भविष्यवाणी १६० १०१ प्रभु के निमित्त से सामुद्रिक शास्त्र १२४ भद्र महाभद्र प्रतिमाओं की आराधना १६० वेता को भ्रम १२५ इन्द्र द्वारा प्रशंसा से संगम देव रुष्ट १९१ १०२ गोशालक का मिलन १६७ १२६ संगम के भयानग उपसर्ग ! १०३ गोशालक की उच्छृखलता १६८ १२७ संगम पराजित होकर भी दुःख देता १०४ गोशालक का परिवर्तन १६६ १०५ गोशालक की पिटाई १७० १२८ संगम क्षमा माँग कर चला गया। १०६ गोशालक की कुपात्रता ....... १७२ | १२९ संगम का देवलोक से निष्कासन १६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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