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मेने तीन खजानेः प्रेम और अब-अति और अंतिम छोबा
और प्रेम उपलब्ध है। और प्रेम के लिए कोई थियोलाजी, कोई धर्मशास्त्र की जरूरत नहीं। और प्रेम के लिए किसी गुरु की आवश्यकता नहीं। प्रेम तो परमात्मा ने तुम्हें दिया ही है। परमात्मा की महान अनुकंपा है कि उसने तुम्हें सारभूत दिया है, जिसको अगर तुम खोल लो तो उसी से तुम्हारा मार्ग खुल जाएगा। तुम्हारे पास उपकरण है।
जीसस का बड़ा प्रसिद्ध वचन है : लव! एंड श्रू लव यू विल नो गॉड। बिकाज लव इज़ गॉड। प्रेम करो! प्रेम से तुम परमात्मा को जानोगे। क्योंकि परमात्मा प्रेम है।
यहां बड़ी बारीक बात है। जीसस ने यह नहीं कहा, लव गॉड सो दैट यू कैन नो गॉड। जीसस ने यह नहीं कहा कि परमात्मा को प्रेम करो, ताकि तुम परमात्मा को जान सको। जीसस ने कहा, लव! एंड यू विल नो गॉड। प्रेम करो! और तुम परमात्मा को जान लोगे। क्योंकि परमात्मा प्रेम है।
इसलिए थोड़ी देर को परमात्मा को भूल जाएं, प्रेम को ही समझ लें कि प्रेम क्या है। उसी समझ में धीरे-धीरे प्रार्थना भी प्रकट होनी शुरू हो जाती है। प्रेम की प्रगाढ़ता प्रार्थना बन जाती है।
प्रेम है दो व्यक्तियों का मिलन; प्रेम है ऐसा क्षण जहां दो व्यक्ति अपने अहंकार को अलग हटा देते हैं; जहां दो व्यक्ति अहंकार को बीच में लेकर नहीं मिलते, अहंकार को हटा कर मिलते हैं। प्रेम है समर्पण दो व्यक्तियों का, एक-दूसरे के प्रति। प्रेम है भरोसा। प्रेम है इस भांति की चेष्टा कि देह तो दो होंगी, लेकिन आत्मा एक होगी।
और प्रेम प्रशिक्षण है। अगर तुमने प्रेम ही नहीं किया और तुमने हजार उपाय कर लिए हैं ताकि तुम प्रेम न कर सको। विवाह तुमने ईजाद कर लिया है प्रेम से बचने को। जैसे संप्रदाय ईजाद किए हैं धर्म से बचने को ऐसा विवाह ईजाद किया है प्रेम से बचने को। प्रेम को काट ही दिया है। इसीलिए तो होशियार कौमें, चालाक कौमें बच्चों को प्रेम नहीं करने देती; मां-बाप तय करते हैं। मां-बाप के तय करने में प्रेम को छोड़ कर और सभी चीजों का विचार किया जाता है। धन का, कुल का, पद का, प्रतिष्ठा का, सब बातों का विचार किया जाता है, सिर्फ प्रेम को छोड़ कर। और इसीलिए तो बाल-विवाह प्रचलित रहा है। क्योंकि अगर युवक हो जाएं तो फिर तुम प्रेम को बिना विचारे छोड़ न पाओगे; फिर प्रेम भीतर घुस जाएगा।
और प्रेम सारे अर्थशास्त्र को बिगाड़ देता है। प्रेम खतरनाक सूत्र है। क्योंकि प्रेम जानता नहीं कि कौन भंगी है, कौन ब्राह्मण है। प्रेम जानता नहीं कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान है। प्रेम तो सिर्फ प्रेम की भाषा जानता है। और सब, कुछ नहीं जानता। प्रेम संप्रदाय नहीं जानता। इसलिए तो मैंने कहा कि विवाह और संप्रदाय समानांतर, साथ-साथ हैं। प्रेम गरीब और अमीर को नहीं जानता। अमीर गरीब के प्रेम में पड़ सकता है। गरीब सम्राट के प्रेम में पड़ सकता है। प्रेम बड़ा खतरनाक है; कहां ले जाएगा, कुछ पता नहीं।
इसलिए प्रेम को काट दो। बाल-विवाह ईजाद किया गया, ताकि प्रेम का कोई उपाय ही न रहे। फिर जब बचपन से ही एक पुरुष और स्त्री पास रहते हैं, तो उनके बीच एक तरह का लगाव बन जाता है जो प्रेम नहीं है। वह लगाव वैसे ही है जैसे बहन और भाई के बीच होता है। साथ-साथ रहने से पैदा होता है। उस लगाव में प्रेम का न तो कोई तूफान है, न कोई आंधी है।
वह लगाव औपचारिक है, फार्मल है। वह तो किसी के भी साथ बहुत दिन तक रहो तो एक लगाव बन जाता है, उसके साथ एक मैत्री बन जाती है, एक पसंद हो जाती है। वह न हो तो खालीपन लगता है; वह मौजूद न हो तो अड़चन मालूम होती है। लेकिन उसमें न तो कोई तूफान आता है, न तुम्हारे प्राणों में कभी ऐसा उन्मेष उठता है कि गीत झर जाएं; न कभी प्राणों में ऐसी कोई आंधी आती है, ऐसा कोई झंझावात, कि सब दीवारें कंप जाएं, आधार कंप जाएं, तुम्हारा घर डोलने लगे भूकंप में। नहीं, उसमें कोई एक्सटैसी, कोई समाधि का कोई क्षण नहीं आता। एक सामाजिक व्यवस्था चलती है, घर-गृहस्थी चलती है।