Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तदुल० ॥७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जांग माऊ पिसुकं तदुज्जयसंसहं कललं किच्चिसं तप्पढमयाए प्रहारं आदरिता गनचाए वक्कमइ. ( गाथा ) सत्ताहं कललं हो । सत्ताई होइ अब्बु || अब्बुया जायए सो | सोनु घणं जये ॥ १७ ॥ पे. - पुंसकन। उत्पत्ति जालवी. तियेचांनी गर्ज स्थिति नत्कृष्टी आठ वर्षोंनी होय. ११६। खरेखर श्राजीव मातापिताना संयोग होते हते (पहेले समये) मातानुं रक्त तथा पितानुं वीर्य, ते बमिश्रित यथा मलीन तथा दुगंडनीय एवा आहारने प्रथम ग्रहण करोने गप पंजे बे पछी सात दिवसे ते गर्ज कललरूप ( चालावाली जेवो ) बाय, त्यारबाद सात दि वसे ते वरसादना पालांना परपोटाजेवो चाय, पक्षी ते परपोटामांची मांसनी पसीजवा था, तथा पीत पेसीमांथी ( आंबानी गोठलीजेतो ) जरा कठिन पेसीजेवो पाय. ॥१७॥ For Private and Personal Use Only अर्थः || G ||

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