Book Title: Sutrkritang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः२ // 591 // श्रुतस्कन्धः२ द्वितीयमध्ययन क्रियास्थानम्, सूत्रम् 32 (667) अधर्मसेवनम् विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालाओ वा गोणसालाओ वा घोडगसालाओ वा गद्दभसालाओ वा कंटकबोंदियाए पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ अन्नेणवि झामावेइ झामतंपि अन्नंसमणुजाणइ इति से महया जाव भवइ ॥से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा कुंडलं वामणिं वा मोत्तियंवा सयमेव अवहरइ अन्नेणवि अवहरावइ अवहरंतंपि अन्नंसमणुजाणइ इति से महया जाव भवइ ॥से एगइओ केणइवि आदाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं समणाण वा माहणाण वा छत्तगं वा दंडगं वा भंडगं वा मत्तगं वा लट्ठि वा भिसिगं वा चेलगं वा चिलिमिलिगं वा चम्मयं वा छेयणगं वा चम्मकोसियं वा सयमेव अवहरति जाव समणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ ॥से एगइओणो वितिगिंछइ तं०गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा सयमेव अगणिकाएणं ओसहीओ झामेइ जाव अन्नपि झामतं समणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवति ॥से एगइओ णो वितिगिंछइ, तं०- गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टाण वा गोणाण वा घोडगाण वा गद्दभाण वा सयमेव घूराओ कप्पेड़ अन्नेणवि कप्पावेति अन्नंपि कप्पंतं समणुजाणइ // से एगइओ णो वितिगिंछइ तं०- गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा उट्टसालाओ वा जाव गद्दभसालाओवा कंटकबोंदियाहिं पडिपेहित्ता सयमेव अगणिकाएणं झामेइ जाव समणुजाणइ ॥से एगइओणो वितिगिंछइ, तं०- गाहावतीण वा गाहावइपुत्ताण वा जाव मोत्तियं वा सयमेव अवहरइ जाव समणुजाणइ॥ से एगइओ णो वितिगिंछइ तं०- समणाण वा माहणाण वा छत्तगंवा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा सयमेव अवहरइ जावसमणुजाणइ इति से महया जाव उवक्खाइत्ता भवइ ।।से एगइओसमणंवा माहणंवा दिस्सा णाणाविहेहिं पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ, अदुवा णं अच्छराए आफालित्ता भवइ, अदुवा णं फरुसं वदित्ता भवइ, कालेणवि से अणुपविट्ठस्स // 591 //