Book Title: Sutrkritang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रुतस्कन्धः२ चतुर्थमध्ययनं प्रत्याख्यान, सूत्रम् 64 (699) दण्डसिद्धिः श्रीसूत्रकृताङ्गं सन् एकान्तेन बालवद्वालः सुप्तवदेकान्तेन सुप्तः, तदेवंभूतश्च बालसुप्ततयाऽविचाराणि- अविचारितरमणीयानि परमार्थविचारणया नियुक्तिश्रीशीला० युक्त्या वा विघटमानानि मनोवाक्कायवाक्यानि यस्य स तथा, यदिवा परसम्बन्ध्यविचारितमनोवाक्कायवाक्यः सन् क्रियासु वृत्तियुतम् प्रवर्त्तते, तदेवंभूतो निर्विवेकतया पटुविज्ञानरहितः स्वप्नमपि न पश्यति, तस्य चाव्यक्तविज्ञानस्य स्वप्नमप्यपश्यतः पापं कर्म श्रुतस्कन्ध:२४ बध्यते, तेनैवंभूतेनाव्यक्तविज्ञानेनापि पापं कर्म क्रियत इति भावः॥६३॥६९८॥ तत्र चैवं व्यवस्थिते चोदकः प्रज्ञापकमेवम॥६६५ // वादीत्- अत्र चाचार्याभिप्रायं चोदकोऽनूद्य प्रतिषेधयति___तत्थ चोयए पन्नवगं एवं वयासि- असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतीए पावियाए असंतएणं काएणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयकायवक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावकम्मे णो कज्जइ, कस्स णं तं हे?, चोयए एवं बवीतिअन्नयरेणंमणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरीए वतिए पावियाए वतिवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरेणं काएणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियारमणवयकायवक्कस्स सुविणमविपासओ एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कजइ। पुणरवि चोयए एवं बवीति- तत्थ णं जे ते एवमाहंसु-असंतएणं मणेणं पावएणं असंतीयाए वतिए पावियाए असंतएणं काएणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयणकायवक्कस सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जड़, तत्थणंजे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु॥ तत्थ पन्नवए चोयगंएवं वयासी-तं सम्मंजंमए पुव्वं वुत्तं, असंतएणं मणेणं पावएणं असंतियाए वतिए पावियाए असंतएणं काएणं पावएणं अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियारमणवयणकायवक्कस्स सुविणमवि अपस्सओपावे कम्मे कजति, तंसम्म, कस्सणं तं हेउं?, आचार्य आह- तत्थ खलु भगवया छजीवणिकायहेऊ पण्णत्ता, तंजहा®तिद्धाए प्र०। // 665 //
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