Book Title: Sutrkritang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीसूत्रकृता नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्धः 2 // 761 // श्रुतस्कन्धः 2 सप्तममध्ययनं नालन्दीयम्, सूत्रम् 72-74 (795-797) बसस्थावरयोर्गमागमः दुप्पच्चक्खायं भवइ, एवंण्हं पञ्चक्खावेमाणाणं दुपच्चक्खावियव्वं भवइ, एवं ते परंपच्चक्खावेमाणा अतियरंतिसयं पतिण्णं, कस्स णं तं हेउं?, संसारिया खलु पाणा थावरावि पाणा तसत्ताए पच्चायंति, तसावि पाणा थावरत्ताए पञ्चायंति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववखंति, तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकायंसि उववजंति, तेसिं च णं थावरकायंसि उववण्णाणं ठाणमेयं धत्तं ॥सूत्रम् 72 // ( // 795 / / ) ___ एवंण्हंपच्चक्खंताणंसुपच्चक्खायं भवइ, एवंण्हं पच्चक्खावेमाणाणंसुपच्चक्खावियंभवइ, एवं ते परंपच्चक्खावेमाणाणातियरंति सयं पइण्णं, णण्णत्थ अभिओगेणंगाहावइचोरग्गहणविमोक्खणयाए तसभूएहिं पाणेहिं णिहाय दंडं, एवमेव सइ भासाए परक्कमे विजमाणे जे ते कोहा वा लोहा वा परं पञ्चक्खावेंति अयंपिणो उवएसे णोणेआउए भवइ, अवियाई आउसो! गोयमा! तुब्भंपि एवं रोयइ?॥सूत्रम्७३॥ ( // 796 // ) / सवायं भगवं गोयमे! उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी-आउसंतो! उदगा नो खलु अम्हे एयं रोयइ, जे ते समणा वा माहणा वा एवमाइक्खंति जाव परूवेंति णो खलु ते समणा वा णिग्गंथा वा भासं भासंति, अणुतावियं खलु ते भासं भासंति, अब्भाइक्खंति खलु ते समणे समणोवासए वा, जेहिंवि अन्नेहिं जीवेहिं पाणेहिं भूएहिं सत्तेहिं संजमयंति ताणवि ते अब्भाइक्खंति, कस्स णं तं हे?, संसारिया खलु पाणा, तसावि पाणा थावरत्ताए पञ्चायंति थावरावि पाणा तसत्ताए पञ्चायंति तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा थावरकार्यसि उववजंति थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववजंति, तेसिंचणं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेयं अघत्तं॥ सूत्रम् 74 // ( // 797 // ) तद्यथा-भोगौतम! अस्तीत्ययं विभक्तिप्रतिरूपको निपात इति बह्वर्थवृत्तिर्गृहीतः, ततश्चायमर्थ:- सन्ति विद्यन्ते कुमारपुत्रा // 761 //
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