Book Title: Sutrkritang Sutram Dwitiya Shrutskandh
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीसूत्रकृताङ्ग नियुक्तिश्रीशीला० वृत्तियुतम् श्रुतस्कन्ध:२ // 729 // श्रुतस्कन्धः 2 षष्ठमध्ययनं आर्द्रक्रीयम्, सूत्रम् 19-25 (754-760) आई कस्योत्तरः पृष्टोऽपृष्टो वा धर्मं व्यागृणीयात् ‘जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थई' इति वचनादित्यतो न रागद्वेषसद्भावस्तस्येति / यत्पुनरनार्यदेशमसौन व्रजति तत्रेदमाह- अनार्याः क्षेत्रभाषाकर्मभिर्बहिष्कृता दर्शनतोऽपिपरि-समन्तादिताः- गताः प्रभ्रष्टा इतियावत् / तदेवमसौ भगवानित्येतत्तेषु सम्यग्दर्शनमात्रमपि कथञ्चिन्न भवतीत्याशङ्कमानस्तत्र न व्रजतीति / यदिवा-परीतदर्शना:- साम्प्रतक्षिणो दीर्घदर्शनिनोन भवन्त्यनार्याःशकयवनादयः, ते हि वर्तमानसुखमेवैकमङ्गीकृत्य प्रवर्तन्ते न पारलौकिकमङ्गीकुर्वन्त्यतः सद्धर्मपरामखेषु तेषु भगवान्न याति, न पुनस्तद्वेषादिबुद्ध्येति / यदप्युच्येत त्वया-'यथाऽनेकशास्त्रविशारदगुडिकासिद्धविद्यासिद्धादितीर्थिकपराभवभयेन न तत्समाजे गच्छती' त्येतदपि बालप्रलपितप्रायम्, यतः सर्वज्ञस्य भगवतःसमस्तैरपिप्रावादुकैर्मुखमप्यवलोकयितुंनशक्यतेवादस्तुदूरोत्सादित एवेत्यतःकुतस्तत्पराभवः?,भगवांस्तु केवलालोकेन यत्रैव स्वपरोपकारं पश्यति तत्रैव गत्वाऽपि धर्मदेशनां विधत्त इति // 18 // 753 // पुनरन्येन प्रकारेण गोशालक आह___पन्नं जहा वणिए उदयट्ठी, आयस्स हेउं पगरेति संगं / तऊवमे समणे नायपुत्ते, इच्चेव मे होति मती वियका // सूत्रम् 19 // // 754 // ) नवं न कुज्जा विहुणे पुराणं, चिच्चाऽमई ताइ य साह एवं / एतोवया बंभवतित्ति वुत्ता , तस्सोदयट्ठी समणेत्तिबेमि ॥सूत्रम् 20 // // 755 // ) समारभंते वणिया भूयगामं, परिग्गहं चेव ममायमाणा / ते णातिसंजोगमविप्पहाय, आयस्स हेउं पगरंति संग। सूत्रम् 21 // ( // 756 // ) 7 अविपरीतदर्शनाः (मु०)। // 729 //
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