Book Title: Sutrakritanga Sutra Part 01
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 12
________________ श्रीसूत्रकृताङ्गसूत्र - प्रथम श्रुतस्कंध की प्रस्तावना प्रस्तावना सूत्रकृतांग सूत्र विषे पू. आ. प्रज्ञ मुनिश्री जंबुविजयजी म.सा., श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पं. बेचरदास, पं. हीरालाल कापडिया वगेरेए लख्युं छे. अहीं केटलीक उपयोगी बाबतो जणावीओ छीओ. सूत्रकृतांगसूत्र अगियार अंगमां बीजा अंग तरीके बिराजमान छे. आ अंगनुं नाम श्वेतांबर परंपरामां सूतकड, सुत्तकड अने सूयगड तरीके प्रसिद्ध छे. 1 दिगंबर परंपरामां सुद्दयड, सुदयड सुदयद एवा नामो आ अंगना मळे छे. निर्युक्तिकार कहे छे- सूयगड = जिनवरमतने सांभळी गणधर भगवाने सूत्रनी रचना करी छे सुत्तगड = कर्मपरिशाटना तथा तदुभययोगथी आ सूत्रनी रचना करवामां आवी छे. चूर्णिकारश्रीओ सूतकड एटले गणधर भगवंतो द्वारा (सूत्र रूपे) अने तीर्थंकर भगवंतोथी ( अर्थ रूपे) उत्पन्न थयेल एवो अर्थ बताव्यो छे. सुतकड एटले स्व-परनी सूचना आपतुं आगम. सूत्र अनुसारे मोक्षमां जवाय छे माटे सुत्तकड. टीकाकार श्री आ आगम ग्रंथना नामनुं अर्थघटन करतां जणाव्युं छे के- सूत अर्थथी तीर्थंकरोथी उत्पन्न थयेल, कृत = ग्रंथ रूपे गणधर श्रीए रचेल छे. सूचाकृत = स्वपर समयनी सूचना जेमां कराय छे. सूत्रकृतांगसूत्रनो परिचय श्री समवायांगसूत्र, श्री नंदिसूत्र दिगंबर परंपरा मान्य धवला टीका तात्वार्थ राजवार्तिक आदिमां आपवामां आव्यो छे. = अहीं स्व समय = जैन सिद्धांतनी स्थापना, पर समय अन्य दर्शनना सिद्धांतो ३६३ अन्य दृष्टिओनी चर्चा जीवा - जीवादि तत्त्वोनुं स्वरूप एवं सुंदर वर्णन कयुं छे के आ ग्रंथ अंधकारमां अटवाता जीवो माटे दीपक समान, मोक्षमार्गे प्रयाण करनारने पगथिया स्वरूप छे. • प्रस्तुत सूत्रकृतांगसूत्रमां जेम अन्य दर्शनोना मतनी वात अने एनो प्रतिवाद करी स्वसिद्धांतनी स्थापना करवामां आवी छे एवी रीते बौद्ध दर्शन आदिना ग्रंथोमां पण भगवान महावीरना सिद्धांतो अने अन्य दर्शनना सिद्धांतोनी चर्चा करी स्वमतनी पुष्टि करी छे. पण, आजना तटस्थ विद्वानो ए वात कबूल करे छे के- तेओ जैनदर्शनने बरोबर समजी शक्या नथी अने खोटी रीते आक्षेपो कर्या छे. • बौद्ध मान्य ग्रंथ 'दिव्यावदान' मां पण ते काळना दार्शनिकोना नामोल्लेख आ प्रमाणे करवामां आव्यो छे"तेन खलु समयेन राजगृहे नगरे षट् पूर्णाद्याः शास्तारः... प्रतिवसति स्म । तद्यथा पूर्णः काश्यपः, मस्करी गोशालीपुत्रः, संजयी वैरट्टीपुत्रः, अजितः केशकम्बलः, ककुदः कात्यायनः, निर्ग्रन्थो ज्ञातिपुत्रः " ( दिव्यावदान पृ. ८९ ) • सूत्रकृतांगना बीजा श्रुतस्कंधना छट्ठा अध्ययन 'आर्द्दकीय' मां गोशाला वगेरेए जे आक्षेपो कर्या छे ते जोतां पण स्पष्ट समजाय छे के- तेओ जैन सिद्धांतने बरोबर समजी शक्या नथी. आर्द्दकुमारे ते बधानी गैरसमजो दूर करी खुलासा कर्या छे. • बीजा श्रुतस्कंधमां तज्जीवतच्छरीरवादनी चर्चा आवे छे एने मळतुं वर्णन बौद्धग्रंथ उदान ( सुत्तपिटक) पृ. - १४२, १४३ मां मळे छे. सूत्रकृतांगसूत्रमां बे श्रुतस्कंध छे. प्रथममां १६ अने बीजामां ७ अध्ययन छे. सूत्रकृतांगनुं परिमाण ३६००० 1. 9. जुओ सूत्रकृतांग निर्युक्ति. २. जुओ प्रतिक्रमण ग्रंथत्रयी, जयधवली पृ. ८५ । 5

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