Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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संस्कृत छाया :
वत्से ! इह संसारे सुलभानीशानि दुःखानि ।
अकृते सुखनिमित्ते धर्मे परलोकबन्धौ ।।२७।। गुजराती अनुवाद :
हे वत्स! सुखना कारणभूत अने परलोकनां बंधु समान धर्म न करवाथी आवा प्रकारना दुःखो आ संसारमां सुलब्ध छे. हिन्दी अनुवाद :
हे वत्स! सुख के कारणभूत तथा परलोक में बन्धु समान धर्म न करने से इस प्रकार के दुःख इस संसार में सुलभ हैं। गाहा :
जायंति दूसहाई जेणं चिय एत्थ दुसह-दुक्खाई।
तेणेव चत्त-रज्जा वण-वासमुवागया धीरा ।।२८।। संस्कृत छाया :
जायन्ते दुःसहानि येनैवात्र दुःसह-दुःखानि ।
तेनैव त्यक्तराज्या वनवासमुपगता धीराः ।।२८।। गुजराती अनुवाद :
___ जेने कारणे आ भवमा असह्य दुःखो आवे छे. ते कारण थी ज सुज्ञ पुरुषोस राज्यने छोडीने वनवासने स्वीकार्यो छे। हिन्दी अनुवाद :
जिस कारण से इस जन्म में असह्य दुःख आता है, उसी कारण से ज्ञानी पुरुष राज-पाट को छोड़कर बनवास स्वीकार करते हैं। गाहा :एवं भणमाणस्स उ कुलवइणो तीइ तावसीइ अहं ।
कन्ने होउं भणिया भयवं! वर-नाण-जुत्तोऽयं ।। २९।। संस्कृत छाया :
एवं भणतस्तु तु कुलपतेस्तया तापस्याऽहम् । कर्णे भूत्वा भणिता भगवान् वरज्ञानयुक्तोऽयम् ।।२९।।