Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 164
________________ गाहा : ता पुच्छिऊण जणगं चलिया हं तस्स दरिसण-निमित्तं । आगमण-परिस्संता ओइन्ना इत्थ उज्जाणे ।।२०३।। । संस्कृत छाया :तस्मात् पृष्ट्वा जनकं चलिताऽहं तस्य दर्शननिमित्तम् । आगमनपरिश्रान्ताऽवतीर्णाऽत्रोधाने ।। २०३।। गुजराती अनुवाद : तेथी पिताजी ने पूछी ने तेना दर्शन माटे हुँनीकळी अने मार्गथी थाकेली हुं आ उघान मां उतरी छु. | हिन्दी अनुवाद : इसलिए पिताजी से पूछकर उसके दर्शन के लिए निकली मैं मार्ग में थककर इस उद्यान में उतरी हैं। गाहा : अहिणव-पढियत्तणओ विज्जाए कहवि मज्झ पयमेगं । पम्हमहन्नाए तेण य न चएमि उप्पइउं ।।२०४।। संस्कृत छाया : अभिनवपठितत्वतो विद्यायाः कथमपि मम पदमेकम् । (पम्ह) विस्मृतमधन्ययास्तेन च न शक्नोम्युत्पतितुम् ।।२०४।। गुजराती अनुवाद : नवा अभ्यास ना कारणे ते विद्यार्नु एक पद हुं भूली गई छु तेथी मंदधाग्यवाली हुं आकाशमा उडवा माटे शक्तिमान नथी. हिन्दी अनुवाद : नये अभ्यास के कारण उस विद्या का एक पद मैं भूल गयी हूँ। इसलिए मंद भाग्य वाली मैं उड़ने में समर्थ नहीं हूँ। गाहा : तं जं तुमए पुढे तं एवं साहियं सुयणु! तुज्झ। विज्जा-वयस्स भंसे स-ट्ठाणं कहणु पाविस्सं? ।।२०५।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186