Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 182
________________ गाहा : भणियं च मए ताव य एयाओ हवंतु अलिय-भणिरीओ। पिय-सहि! तुमंपि संपइ असमंजस-भासिणी जाया ।। २४४।। संस्कृत छाया : भणितं च मया तावच्चैता भवन्तु अलीकभणित्र्यः । प्रियसखि ! त्वमपि सम्प्रति असमञ्जसभाषिणी जाता ।। २४४।। गुजराती अनुवाद :. त्यारे में कह्यु, हे प्रिय सखी! आ सर्व सखीओ तो मिथ्या बोलनारी छे. परंतु तुं पण हमणां विपरीत (उपहास वचन) बोलनारी थइ. हिन्दी अनुवाद : तब मैंने कहा, 'हे प्रिय सखी! ये सभी सखियाँ तो झूठ बोलने वाली है परन्तु तूं भी अभी उल्टा (उपहास) बोलने वाली हो गयीं। गाहा : अइनिउणं किल चित्तं अम्हे कोऊहलेण पुलएमो। तुम्हे सढ-हिययाओ अन्नह सव्वं वियप्पेह ।।२४५।। संस्कृत छाया : अतिनिपुणं किल चित्रं वयं कुतूहलेन पश्यामः । यूयं शठहृदयाऽन्यथा सर्व विकल्पयत ।। २४५।। गुजराती अनुवाद : ___ अमे तो अति सुंदर आ चित्रने कुतूहल मात्र थी जोइस छीस. ज्यारे शठ हृदयवाळा तमे जूठी ज कल्पना करो छो. हिन्दी अनुवाद : हम तो अति सुन्दर इस चित्र को कुतूहल मात्र के कारण देख रहे हैं जबकि शठ हृदयवाली तुम झूठी कल्पना कर रही हो। गाहा : अह कुमुइणीए, भणियं एवं एयंति नत्थि संदेहो । ता सहि! तुमंपि एयं चित्तं लिहिउं समन्मससु ।। २४६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186