Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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गाहा :
ईसिं हसिऊण तओ सिरिमइयाए सहीए संलत्तं । एत्तिय कालं रइ - विरहिओ इमो आसि पंचसरो ।। २३० ।। संपइ रईए सहिओ एसो मयणोत्ति किं न मुलएसि ? । पयडा रईवि एसा आसन्ना चेव एयस्स ।। २३१ ।। संस्कृत छाया :
ईषद्धसित्वा ततः श्रीमत्या सख्या संलपितम् । एतावत्कालं रतिविरहितोऽयमासीत् पञ्चशरः ।। २३० ।। सम्प्रति रत्या सहित एष मदन इति किं न पश्यसि ? । प्रकटा रतिरपि एषाऽऽसन्ना चैवैतस्य ।। २३१।।
गुजराती अनुवाद :
कइंक हास्य करीने श्रीमती सखीए कघुं- 'अत्यार सुधी आ कामदेव रतिथी वियुक्त हतो. हमणां आ कामदेव रति सहित थयो ते शुं तुं नथी जोती? साक्षात् आ रतिपण आनी समीपमां ज छे.
हिन्दी अनुवाद :
कुछ हंसकर श्रीमती सखी ने कहा, आज तक यह कामदेव रति से अलग था। आज यह रति सहित हुआ क्या तुम यह नहीं देख रही हो? साक्षात् यह रति इनके समीप में ही है।
गाहा :
तं सोउं सव्वाहिं सहत्थ - तालं तु पहसिउं भणियं ।
एवं एवं सिरिमइ ! सम्मं हि विणिच्छियं तुमए ।। २३२ ।।
संस्कृत छाया :
तच्छ्रुत्वा सर्वाभिः सहस्ततालं तु प्रहस्य भणितम् ।
एवमेतद् श्रीमति ! सम्यग् हि विनिश्चितं त्वया ।। २३२ ।।
गुजराती अनुवाद :
ते वचन सांभळी ने सर्व सखीओ हाथ नी ताली दइ हास्य पूर्वक बोली हे श्रीमती ! आ सत्य ज छे. तारो निर्णय योग्य ज छे.