Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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गाहा :
नाऊण मज्झ भावं बसंतियाए सहीइ संलत्तं ।
को एस तए लिहिओ पियंवए! लोयणाणंदो? ।। २२८।। संस्कृत छाया :
ज्ञात्वा मम भावं वसंतिक्या सख्या संलपितम् ।
क एष त्वया लिखितः प्रियंवदे ! लोचनानन्दः ? ।।२२८।। गुजराती अनुवाद :
मारा भावने जाणी ने मारी सखी वसंतिकास पूछयु- हे प्रियंवदे! नेत्रो ने आनंद आपनार आ कोनुं चित्र ते आलेख्युं छे? हिन्दी अनुवाद :
मेरे भाव को समझकर वसंतिका ने पूछा हे प्रियंवदे! आँखों को सुख देने वाले किसका चित्र तुमने बनाया है? गाहा :
भणियमह कुमुइणीए वसंतिए! किं तुहित्थ पुच्छाए? ।
कामिणि-हिययाणंदो लिहिओ रइ-विरहिओ मयणो ।। २२९।। संस्कृत छाया :
भणितमथ कुमुदिन्या वसंतिके ! किं तवात्र पृच्छया ?।
कामिनीहृदयाऽऽनन्दो लिखितो रतिविरहितो मदनः ।।२२९।। गुजराती अनुवाद :
त्यारे कुमुदिनी बोली, हे वासंतिके? ताटे आ बाबतमां पूछवानी शी जफर छे? कामिनी ना हृदय ने आनंददायक रति रहित कामदेव चित्रेलो
हिन्दी अनुवाद :
. तब कुमुदिनी बोली हे वसंतिके! तुम्हें इस विषय में पूछना क्या जरूरी है? कामिनी के हृदय को आनन्द देने वाले रति रहित कामदेव का चित्र बनाया है।