Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार मैंने कहा तो 'इसमें तुम्हारा हमारा दोनों का लाभ हैं', ऐसा कहती हुई वह मेरे पास आकर कान में धीरे से वह विद्या बोली । गाहा : तत्तो चितंतीए लहुमेव मए तयं पयं लद्धं । लहिऊण ती सिद्धं भवइ इमं किं नु एवंति ? ।। २१० ।। संस्कृत छाया : ततश्चिन्तयन्त्या लध्वेव मया तत् पदं लब्धम् । लब्ध्वा तस्यै शिष्टं भवतीदं किन्नु एवमिति ? ।। २१० ।। गुजराती अनुवाद : त्यारे विचारतां तर ज ते विद्यानुं पद मने आवडी गयुं याद करीने में प्रियंवदा ने कह्युं शुं तारुं भूलाई गयेलुं पद आ छे? हिन्दी अनुवाद : ऐसा विचार करते हुए तुरन्त उस विद्या का पद मुझे याद आ गया। याद कर मैंने प्रियंवदा से कहा क्या तुम्हारा भूला हुआ पद यह है ? गाहा : वियसिय-मुह कमलाए तीए भणियं तु सुट्टु उवलद्धं । चलणेसु निवडिऊणं भणियं मह होसि तं गुरुणी ।। २११ ।। - संस्कृत छाया : विकसितमुखकमलया तया भणितं तु सुष्ठुपलब्धम् । चरणयो- र्निपत्य भणितं मम भवसि त्वं गुर्वी ।। २११ ।। गुजराती अनुवाद : विकसित मुखवाळी तेणीस कहूं- 'तमने सालं पद याद आवी गयुं त्यारबाद चरणमां पडी ने कह्युं 'तमे हवे मारा गुरुणी छे हिन्दी अनुवाद : तब विकसित मुखवाली उसने कहा, तुम्हें अच्छा पद याद आ गया और उसके पश्चात् मेरे चरणों में गिर कर कहा, 'तुम मेरी गुरुणी' हो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186