Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 168
________________ गाहा : जीए विज्जा दिन्ना, ता मह साहेसु तुज्झ किं नामं.?। एत्थ पुरम्मी कस्स व धूया तं सुकय-पुन्नस्स? ।। २१२।। संस्कृत छाया : यया विद्या दत्ता, तर्हि मम कथय तव किं नाम ? । अत्र पुरे कस्य वा दुहिता त्वं सुकृतपुण्यस्य ? ।।२१२।। गुजराती अनुवाद : कारण के तमे विद्या आपी छे. तेथी मने कहो, तमाझं नाम शुं छे? आ नगर ना क्या पुण्यशाळी नी आप पुत्री छो? हिन्दी अनुवाद : क्योंकि तुमने मुझे विद्या दी है। इसलिए मुझे बताओ तुम्हारा नाम क्या है? इस नगर के किस पुण्यशाली की तुम पुत्री हो? गाहा : मज्झ सहीए भणियं भहे! नरवाहणस्स नरवइणो। रयणवइ-देवीए धूया सुरसुंदरी एसा ।।२१३।। संस्कृत छाया : मम सख्या भणितं भद्रे ! नरवाहनस्य नरपतेः । रत्नवतीदेव्या दुहिता सुरसुन्दरी एषा ।।२१३।। गुजराती अनुवाद : त्याटे माटी सखीस कह्यु- हे अद्रे! नरवाहन राजा नी साणी रत्नवती देवी नी पुत्री आ सुरसुंदरी छे. हिन्दी अनुवाद : तब मेरी सखी ने कहा, 'हे भद्रे! नरवाहन राजा की रानी रत्नदेवी की यह सुरसुन्दरी नामक पुत्री है। पाहा : अच्चन्मय-गुण-नियरा किं न सुया सयल-लोय-विक्खाया। विज्जाहर-धूयाए घूया सुरसंदरी भहे!? ।।२१४।।

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