Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 166
________________ गुजराती अनुवाद : त्यारे मे कह्युं 'हे प्रियंवदे! ते विद्यानो बीजा नी आगल कही शकाय वो जो कल्प होय तो तुं मारी आगल ते मंत्र बोल. हिन्दी अनुवाद : तब मैंने कहा, 'हे प्रियंवदे! उस विद्या को दूसरे के आगे यदि कहा जा सकता हो तो मेरे आगे बोलो' । गाहा : भणियं पियंक्याए साहिज्जइ नत्थि कोवि दोसोत्ति । जइ एवं ता साहसु मा कहवि पयं उवलभिज्जा ।। २०८ ।। संस्कृत छाया : भणितं प्रियंवदया कथ्यते नास्ति कोऽपि दोष इति । यद्येवं तर्हि कथय मां कथमपि पदमुपलभ्येत ।। २०८ ।। गुजराती अनुवाद : त्यारे प्रियंवदा बोली, 'ते बोलवामां कोइ पण प्रकार नो देष नथी. पछी में कयुं, जो एम होय तो ते मंत्र तुं बोल, तेनुं पद मने कदाच याद आवी जाय. हिन्दी अनुवाद : तब प्रियंवदा ने कहा, 'इसे बोलने में किसी प्रकार का दोष नहीं है'। तब मैंने कहा कि ऐसा हैं तो वह मन्त्र तूं बोला हो सकता है उसका आगे का पद कदाचित् मुझे याद आ जाय । गाहा : एवं च मए भणिए समाणसिद्धित्ति तीइ भणिऊण । ठाऊण कन्न- मूले पढिया सणियं तु सा विज्जा ।। २०९ ।। संस्कृत छाया : एवं च मया भणिते समानसिद्धिरिति तस्या भणित्वा । स्थित्वा कर्णमूले पठिता शनैस्तु सा विद्या ।। २०९ ।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे मे कह्युं त्यारे, आपणने बने ने समान लाभ छे. एम कही ते, मारी पासे आवी कान मां धीमे थी ते विद्या बोली.

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