Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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संस्कृत छाया :
तद् यत्त्वया पृष्टं तदेतद् कथितं सुतनो ! तव ।
विद्यापदस्य से स्वस्थानं कथं नु प्राप्स्यामि ? ।। २०५ ।।
गुजराती अनुवाद :
हे सुतनो! ते जे पूछयुं तेनो में तने उत्तर आप्यो, हवे विद्यानु विस्मरण थये छते हुं पोताना स्थान मां केवी रीते पहोंचु ?
हिन्दी अनुवाद :
हे देवी! तुमने जो पूछा उसका मैंने उत्तर दिया। अब विद्या भूल जाने के बाद मैं अपने स्थान पर कैसे पहुँचूँ ?
गाहा :
पुणरुत्तंपि हु पढिए संभरइ न मज्झ तं पयं कहवि । उत्तट्ठ - मय- सिलिंबच्छि ! तेणमहमाउला जाया । । २०६ ।।
संस्कृत छाया :
वारंवारमपि खलु पठिते संस्मरति न मम तद् पदं कथमपि । उत्त्रस्तमृग (सिलिंब) शावाक्षि ! तेनाऽहमाकुला जाता ।। २०६ । । गुजराती अनुवाद :
ते विधानुं पद बारंबार बोलवा छतां याद आवतुं ज नथी, हे मृगाक्षि ! तेथी हुं आकुल व्याकुल थइ छं.
हिन्दी अनुवाद :
उस विद्या का पद बार-बार बोलने पर भी याद आता ही नहीं है। हे मृगनयनी ! इस लिए मैं काफी परेशान हूँ ।
गाहा :
तत्तो य मए भणियं पियंवए! अत्थि तीइ विज्जाए ।
एसो कप्पो जं किल साहिज्जइ हंदि ! अन्नस्स ? ।। २०७।।
संस्कृत छाया :
ततश्च मया भणितं प्रियंवदे ! अस्ति तस्या विद्यायाः ।
एष कल्पो यत्किल कथ्यते हन्दि ! अन्यस्य ? ।। २०७ ।।