Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
गाहा :
इय चिंततेण मए सीयल-जल-सीयरेहिं संसित्ता । मिउ-पवण-करण-विहिणाअह विहिया सासमासत्या ।।११९।। संस्कृत छाया :
इति चिन्तयता मया शीतलजलशीकरैः संसिक्ता ।
मृदुपवनकरणविधिनाऽथ विहिता सा समावस्ता ।।११९।। गुजराती अनुवाद :
आ प्रमाणे विचारता शीतलजल बिंदुओ बड़े सिंचन कर्यु. अने मंद मंद पवन नाखीने तेणी ने में स्वस्थ करी! हिन्दी अनुवाद :
इस प्रकार विचार करते हुए शीतल जल की बूंदों से उसे सींचा तथा धीरेधीरे हवा देकर मैंने उसे स्वस्थ किया। गाहा :
हरिणिव्व जूह-भट्ठा सतरल-तारं दिसाओ पुलयंती ।
भणिया मए सुमहुरं कीस तुमं सुयण! बीहेसि? ।।१२०।। संस्कृत छाया :
हरिणीव यूथभ्रष्टा सतरलतारं दिशः पश्यन्ती ।
भणिता मया सुमधुरं कस्मात्त्वं सुतनो ! बिभेषि ? ।।१२०।। गुजराती अनुवाद :
यूथथी भ्रष्ट थयेली हरिणीनी जेम चपल दृष्टिथी दिशाओने जोती हती त्यारे में सुमधुर स्वरे कडं हे सुतनु! तुं शा माटे डटे छे? हिन्दी अनुवाद :
___ अपने दल से बिछड़ी हिरणी जैसी चंचल दृष्टि से जब वह इधर-उधर चारों दिशाओं में देख रही थी, तभी मैंने मधुर स्वर में कहा, हे सुतनु! तूं क्यों डर रही हो? गाहा :
मा भद्दे! कुणसु भयं थेवंपि, हु.जणय-निव्विसेसो हं। का सि तुमं कत्तो वा इह पडिया मज्झ साहेसु? ।।१२१।।