Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text ________________
संस्कृत छाया :
यदाज्ञापयसि स्वामिनि ! इति भणित्वा हंसिका गता झटिति एकान्तस्थितसुरसुन्दर्याः पार्श्वेऽऽलीना । । १६५ ।।
गुजराती अनुवाद :
"हे स्वामिनी! आपनी आज्ञा प्रमाण छे' एम कही ने हंसिका जल्दी गइ अने एकांत रहेली सुरसुंदरी नी पासे बेठी!
हिन्दी अनुवाद :
हे स्वामिनी ! आपकी आज्ञा प्रमाण है, ऐसा कहकर हंसिका शीघ्र जाकर सुरसुन्दरी के पास बैठी।
गाहा :
सम्भाव नेह-सूयग- वीसंभ- कहाहिं विविह- भणिईहिं । उप्पाय वीसंभं भणिया सुरसुंदरी तीए ।। १६६।।
संस्कृत छाया :
1
सद्भाव स्नेहसूचकविश्रम्भकथाभिर्विविधभणितिभिः । उत्पाद्य विश्रम्भं भणिता सुरसुन्दरी तया ।। १६६ ।।
/
-
गुजराती अनुवाद :
सद्भाव अने स्नेहसूचक एवी केटलीक विविध वातो बड़े विश्वास पैदा करी ते हंसिकाए सुरसुंदरी ने पूछयुं
हिन्दी अनुवाद :
सद्भाव और प्रेमपरक ऐसी कई बातों से विश्वास पैदा करने के बाद हंसिका ने सुरसुन्दरी से पूछा।
गाहा :
सुरसुंदरि ! तुह चरियस्स निसुणणे अत्थि कोउगं मज्झ । कह केण किं निमित्तं अवहरिया किंच अणुभूयं ? ।। १६७ ।।
संस्कृत छाया :
सुरसुन्दरि ! तव चरितस्य निश्रवणेऽस्ति कौतुकं मम ।
कथं केन किं निमित्तमपहृता किञ्चाऽनुभूतम् ? ।। १६७ ।।
Loading... Page Navigation 1 ... 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186