Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 149
________________ गुजराती अनुवाद : हे सुरसुंदरी! तारूं चरित्र सांभलवानी मने उत्कंठा छे. कोना बड़े कया निमित्ते तास अपहरण करायु अने तने शु अनुभव थयो छे? हिन्दी अनुवाद : हे सुरसुन्दरी! आपका चरित्र सुनने की हमारी इच्छा है। किस प्रकार, किस कारण से आपका अपहरण किया गया और आपको कैसा अनुभव हुआ है? गाहा : सुरसुंदरीए भणियं ताएणवि आसि पुच्छिया एव । किं पुण लज्जाए मए न सक्कियं तत्थ वज्जरिऊ ।।१६८।। संस्कृत छाया : सुरसुन्दर्या भणितं तातेनाऽपि आसीत् पृष्टा एव । किं पुनर्लज्जया मया न शक्यं तत्र कथयितुम् ।।१६८।। गुजराती अनुवाद : सुरसुंदरीस कां-"पितास पण मने पूछयु हतुं पण लज्जा वड़े तेमने कहेवा हुं समर्थ न थई!" हिन्दी अनुवाद : सुरसुन्दरी ने कहा,-पिताजी ने भी मुझसे पूछा था किन्तु लज्जा के कारण में उनसे कहने में समर्थ नहीं हो सकी। गाहा :किंच। मह चरियं सुम्मंतं जणेई पास-ट्ठियाणवि दुक्खं । तेण न वोत्तुं जुत्तं मज्झवि गुरु-दुक्ख-संजणगं ।।१६९।। संस्कृत छाया :किञ्च । मम चरितं श्रूयमाणं जनयति पार्थस्थितानामपि दुःखम् । तेन न वक्तुं युक्तं ममाऽपि गुरुदुःखसञ्जनकम् ।।१६९।।

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