Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 160
________________ गाहा :तं दटुं विम्हिया हं संपत्ता तीइ अंतियं तुरियं । भणिया य मए सुंदरि! का सि तुमं किंच कुणसि इमं? ।।१९४।। संस्कृत छाया : तां छष्ट्वा विस्मिताऽहं सम्प्राप्ता तस्या अन्तिकं त्वरितम् ।। भणिता च मया सुन्दरि ! काऽसि त्वं किञ्च करोषीदम् ? ।।१९४।। गुजराती अनुवाद : तेनी आवी रीत जोई ने मने खूब आश्चर्य थयुं अने तरत तेनी पासे गई. अने में कडं हे सुंदरी! तुं कोण छे? अने आ शुं करे छे? हिन्दी अनुवाद : उसे इस प्रकार देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैं तुरन्त उसके पास गयी और बोली हे सुन्दरी! तुम कौन हो और यह क्या कर रही हो? गाहा :तीए भणियं भद्दे! आयनसु, गिरि-वरम्मि वेयड्डे । दक्षिण-सेढीए रयणसंचयं अत्थि वर-नयरं ।।१९५।। संस्कृत छाया : तया भणितं भद्रे ! आकर्णय गिरिवरे वैताब्ये । दक्षिणश्रेण्यां रत्लसञ्चयमस्ति वरनगरम् ।।१९५।। गुजराती अनुवाद : तेणीर कडं, हे अद्रे! तुं सांभळ! वैताढ्य पर्वत पर दक्षिण श्रेणि मां रत्नसंचय नामर्नु उत्तम नगर छे. हिन्दी अनुवाद : उसने कहा, 'हे भद्रे! सुनो। वैताढ्य पर्वत के दक्षिण श्रेणी में रत्नसंचय नाम का उत्तम नगर है। गाहा :विज्जाहर-वर-चक्की राया तत्यत्थि चित्तवेगोत्ति । राया य भाणुवेगो अत्थि पुरे कुंजरावते ।। १९६।।

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