Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
View full book text
________________
गुजराती अनुवाद :
'वळी, हे सखी! माझं चरित्र पासे रहीने सांभळनार ने पण दुःख पेदा करे छे। तेथी अति दुःखकारक स्वो ते वृत्तांत कहेवो मने योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद :
हे सखी! हमारा चरित्र पास में रहकर सुनने वाले को भी दुःखी कर देता है। इसलिए अति दुःख पैदा करनेवाले ऐसे वृत्तान्त कहने के योग्य मैं नहीं हूँ। गाहा :तहवि हु तुमए पुट्ठा वयंसि! कोऊहलेण गरुएण ।
साहेमि तेण निसुणसु एग-मणा वज्जरिज्जंतं ।।१७०।। संस्कृत छाया :तथापि खलु त्वया पृष्टा वयस्ये ! कुतूहलेन गुरुणा ।
कथयामि तेन निशृणु एकमनाः कथ्यमानम् ।।१७०।। गुजराती अनुवाद :
सुरसुंदरी वृत्तांत तो पण, हे सखी! घणा कुतूहल वड़े ते मने पूछयु छे तेथी कहुं छु. तो ते कहेवातो वृत्तांत स्कायता पूर्वक सांधळ। हिन्दी अनुवाद :
फिर भी हे सखी! बड़े कुतूहल के साथ तुमने पूछा है, इसलिए कह रही हूँ, कहे हुए वृत्तान्त को एकाग्रता पूर्वक सुनो। गाहा :
अस्थि पुहई-पयासं निरग्गलोदग्ग-वग्गिर-तुरंगं । वग्गिर-तुरंग-खर-खुरुक्खय-खेहाइन्न-रिक्ख-पहं ।। १७१।। रिक्खपह-पवण-कंपिर-धय-वड-रेहंत-भूरि-साणूरं । साणूर-गहिर-वज्जिर-तूर- रवुप्फुण्ण-दिसि-चक्कं ।। १७२।। दिसि-चक्क-गेय-सत्थाह सत्थ-किज्जत-वज्ज-वाणिज्ज । वाणिज्ज-कला-पत्तट्ठ-लट्ठ-वाणियग-रमणीयं ।।१७३।।