Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 146
________________ तदा तस्य प्रापणेऽपि कोऽपि उपायोऽपि लभ्यते नूनम् । न चैषा कथयिष्यति पृष्टाऽपि यथास्थितं मह्यम् ।।१६१।। त्रिभिः कुलकम्। गुजराती अनुवाद : जो ते एकांतनु सेवन करें, वियुक्त चक्रो ने एकत्रित करे, प्रिय ना संगमवाळी वार्ताओं ने तल्लिन थइ सांभळती होय तो हुंजाणु के स्वा प्रकारनी चेष्टाओ वड़े स्नामां प्रेमयह विलास करे छे. अने जो ते पोतानो यथास्थित वृत्तांत जणावे तो सनी प्राप्ति नो कोई उपाय पण जकर मळे. परंतु पूछवा छतां पण आ बाला वास्तविक अर्थ जणावती नथी। विधिः कुलकम्। हिन्दी अनुवाद :- यदि वह एकान्त का सेवन करे, वियुक्त चक्रों को एकत्रित करे, प्रिय से मिलन वाली बातों को तल्लीन होकर सुनती हो.... तो मैं समझं कि इस प्रकार की क्रियाएँ उसमें प्रेम विलास कर रही हैं। यदि वह अपनी वस्तुस्थिति से अवगत कराए... तो उसके समाधान का कोई उपाय जरूर मिले किन्तु पूछने पर भी यह बालिका वास्तविक अर्थ नहीं बता रही है। गाहा : वाम-सहावी मयणो अक्खिज्जंतो न पायडो होइ। नज्जइ आगारेहिं गोविज्जंतोवि छएहिं ।।१६२।। संस्कृत छाया : वामस्वभावो मदन आख्यायमानो न प्रकटो भवति । ज्ञायत आकारै-र्गोप्यमानोऽपिच्छेकैः ।।१६२।। गुजराती अनुवाद : विपरीत स्वभाववाळो कामदेव वातचीतथी प्रगट थतो नथी. परंतु मानसिक चेष्टाओ बड़े गोपवी राखेलो काम विकार विचक्षणो वड़े जाणी शकाय छे. हिन्दी अनुवाद : विपरीत स्वभाव वाले कामदेव की बात-चीत से कुछ प्रगट नहीं होता किन्तु यदि काम विकार छुपा कर रखती हो तो उसकी मानसिक चेष्टाओं से उसे जाना जा सकता है।

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