Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 145
________________ हिन्दी अनुवाद : फिर भी वह खुश नहीं है। चिन्ता से प्रतिदिन सूखती जा रही है। ऐसी क्या चिन्ता है जिससे यह प्रतिदिन सूखती जा रही है? गाहा : जइ ता माउ-पिऊणं सुमरइ ता किं कहेइ न हु मज्झ? । मयण-वियार-सरिच्छा नेय वियारा तहिं हुंति ।।१५८।। संस्कृत छाया : यदि तावत् मातापित्रोः स्मरति तर्हि किं कथयति न खलु मम ? । मदनविकारसमक्षा नैव विकारास्तत्र भवन्ति ।।१५८।। गुजराती अनुवाद : जो ते माता-पिताने याद करती होय तो मने केम कहेती नथी? तथा कामविकार जेवा कोई तेवा विकार पण स्नान्मां जणाता नथी! हिन्दी अनुवाद : यदि वह माता-पिता को याद करती है तो मुझसे कहती क्यों नहीं? काम विकार जैसे कोई विकार भी उसमें हैं, ऐसा मालूम नहीं होता। गाहा : एगंतं जह सेवइ विहडिय-चक्काइं जह य मेल्लेइ । पिय-संगम-साराओ कहाओ जह सुणइ तच्चित्ता ।।१५९।। तह मन्ने पेम्म-गहो विलसइ एवंविहाहिं चिट्ठाहिं । ता जइ एसा मज्झं तहट्टियं साहइ सरूवं ।।१६० ।। ता तस्स पावणम्मिवि कोवि उवाओवि लम्भए नूणं । न य एसा वज्जरिही पुट्ठावि जट्टियं मज्झ ।।१६१।। संस्कृत छाया : एकान्तं यथा सेवते विघटितवाक्यानि यथा च मुञ्चति । प्रियसङ्गमसाराः कथा यथा शृणोति तच्चित्ता ।। १५९।। तथा मन्ये प्रेमग्रहो विलसत्येवंविधाभिश्चेष्टाभिः । तर्हि यद्येषा मम तथास्थितं कथयति स्वरूपम् ।।१६०॥

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