Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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संस्कृत छाया :
निःश्वसिति दीर्घदीर्घ क्षणेन स्थूलाश्रूणि मुञ्चति ।
मूर्च्छति क्षणेन क्षणेन संवृणोत्यात्मानम् ।।१५३।। गुजराती अनुवाद :
मोटा निःश्वास मुके छे. अश्रुजल वहेवरावे छे. क्षणवारमा मूच्छित थई जाय छे. क्षणमां पोतानां आत्माने छुपावी दे छे. हिन्दी अनुवाद :
लम्बी नि:स्वास छोड़ती है, आँसू बहाती है, क्षणभर में मूर्च्छित हो जाती हैं, क्षण में अपनी आत्मा को छुपा लेती है। गाहा :विलवइ खणेण विहसइ रोवइ खणेण मूयल्लिया होइ ।
गुरु-चिंता-भर-विहुरिय-हियया परिहाइ अणुदियहं ।।१५४।। संस्कृत छाया :विलपति क्षणेन विहसति रोदिति क्षणेन मूका भवति ।
गुरुचिन्ताभरविथुरितहृदया परिजहात्यनुदिवसम् ।।१५४।। गुजराती अनुवाद :
ते क्षणवाट विलास करे छे. क्षणमा हास्य कटे छे. क्षणमा रुदन करे छे, क्षणवार मुंगी थई जाय छे. प्रतिदिन अतिशय चिंताना भारथी खिन्न हृदयवाळी, मुखवाळी ते देखाय छे. हिन्दी अनुवाद :
क्षणभर में वह प्रसन्न हो जाती है, क्षण में हँसने लगती है क्षण में रोने लगती है, क्षण में वह चुप हो जाती है। वह प्रतिदिन अति चिंता के भार से खिन्न हृदयवाली दिखाई देती है। गाहा :अह तं विगयाणंद पिच्छिय कमलावई विचिंतेइ ।
आणाकारी सव्वोवि परियणो ताव एईए ।।१५५।। संस्कृत छाया :
अथ तां विगताऽऽनन्दां प्रेक्ष्य कमलावती विचिन्तयति । आज्ञाकारी सर्वोऽपि परिजनस्तावदेतस्याः ।।१५५।।