Book Title: Sramana 2016 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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आ अटवीमां कुशायपुर तरफ जतो समृद्धिवाळो एक वणिक सार्थ लुटायो हतो. ते बखते तारे योग्य आ सर्व आभूषणो प्राप्त थया. हिन्दी अनुवाद :
हे सुरथ! ये आभूषण तुम्हें कहाँ से प्राप्त हुए, मुझे बताओ। तब उसने कहा, 'हे सुन्दरी! सुनो! पहले मेरे भिल्ल पुरुषों द्वारा इस जंगल में कुशाग्रनगर की तरफ जाते हुए समृद्धशाली एक सार्थ लूटा गया था। उस समय तुम्हारे योग्य ये सभी आभूषण प्राप्त हुए थे। गाहा :
तत्तो य मए भणियं महं संतियमेवमाभरणमेयं । सिरिदत्त-नामगस्स ओ वणियस्स समप्पियं आसि ।।७।। हरिसिय-मुहेण भणियं जइ एवं तरिहि सुंदरतरंति ।
ता गेण्ह इमं सुंदरि! इमस्स जोग्गा तुमं, नन्ना ।।७१।। संस्कृत छाया :
ततश्च मया भणितं ममसत्कमेवाभरणमेतद् । श्रीदत्तनामकाय ओ ! वणिजाय समर्पितमासीत् ।।७०।।
हर्षितमुखेन भणितं यद्येवं तर्हि सुन्दरतरमिति । - तावद् गृहाणेदं सुन्दरि ! अस्य योग्या त्वं, नान्या ।।७१।। गुजराती अनुवाद :- . ___ त्यारे मे कह्यु :आ सर्व अलंकार मारा जछे जे श्रीदत्त नामना वणिकने आंप्या हता.
हर्षित मुखे तेणे कर्खा- 'जो सम होय तो बहु सारु. हे सुंदरी! तो आ अलंकाराने ग्रहण कर. तुंज आने योग्य छे. बीजी कोइ स्त्री नहि. हिन्दी अनुवाद :
तब मैंने कहा कि यह सारा आभूषण मेरा है जिसे श्रीदत्त नामक वणिक को मैनें दिया था। हर्षित मुखवाला उसने कहा, 'यदि ऐसा है तो बहुत अच्छा। हे सुन्दरी! यह आभूषण तुम रखो क्योंकि तुम इसके योग्य हो, दूसरी कोई स्त्री नहीं। गाहा :
अह तस्स दुट्ठ-भावं अन्नाऊणं तयं मए गहियं । तत्तो य पइदिणं सो उवयरइ ममं असुह-भावो ।।७२।।